नागा साध्वी आखिर कपड़े क्यों पहनती हैं ?

Image Source: Wikipedia


अक्सर आपने नागा साधुओ को तो देखा ही होगा। और यह भी देखा होगा की वह कभी कपड़े पहनते है। हमेशा निर्वस्त्र रहते है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है, कि ये साधु कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं। तो जैसा की नागा साधु हिंदू धर्मावलंबी साधु हैं, जो सदैव नग्न रहने और युद्ध करने की कला में माहिर होने के लिए जाने जाते हैं। जिनकी परंपरा गुरु श्री. शंकराचार्य द्वारा की गई थी जो की आज भी जारी है। 

नागा साधुओं का कपड़ों को लेकर यह मानना है, कि कपड़े तो वो लोग पहनते हैं, जिनको अपनी स्वयं की सुरक्षा करनी है, आखिरकार हम तो ठहरे बाबा। इसलिए हमें अपनी सुरक्षा का कोई महत्व नहीं है। और आपके मन में यह भी खयाल आया होगा की इन नागा साधुओं पर किसी भी मौसम का असर क्यों नहीं होता। उदाहरण के तौर पर जैसे ठंडी, गर्मी और बारिश। 


इसलिए आप जान लीजिए की नागा साधुओ का शरीर समय के साथ–साथ ऐसा हो जाता है, कि उनपर किसी भी मौसम में कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह लोग हमेशा भगवान की ध्यान साधना में मग्न रहते हैं। नागा साधुओं को दुनिया से कोई मतलब नहीं होता, और न हीं इनका परिवार वालो से होता है। क्यों की इनका परिवार नागा समुदाय के लोग ही होते हैं। 

नागा साधू बनने के लिए कितनी अवधी लगती है?

नागा पंथ में शामिल होने के लिए और उनको उससे जुड़ी सभी जरूरी जानकारी हासिल करने में लगभग 6 से 12 साल तक का समय लगता हैं। इसलिए इस कार्यकाल के दौरान जो भी नए सदस्य होते है, वह सिर्फ एक लंगोट के अलावा कुछ भी नहीं पहनते। और कुम्भ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद यह नागा साधु अपने तन पर की लंगोट को भी त्याग देते हैं, और जीवन भर यूं ही निर्वस्त्र रहते हैं।


हमारी भारतीय संस्कृति में साधु संतों का बड़े ही आदर-सम्मान देकर उन्हें पूजा जाता है, और हमारे लिए उनका यह त्याग अनुकरणीय है। और हम उनका यह त्याग, तपस्या और अनोखी योग साधना कुंभ मेलों में देख सकते हैं। हमारे देश में वैसे तो कई तरह के साधु-संत होते हैं, और हर कोई इस बात को भली भांति जानता भी है, कि पुरुष ही नागा साधु बनते हैं। लेकिन आपको ये जानकर थोड़ा सा अचरज जरूर होगा कि महिलाएं भी नागा साधु बन सकती हैं। 

इसलिए हमारे इस लेख का पूरा Focus पुरुष नागा साधू नही बल्कि महिला नागा साधुओं पर आधारित है। हम यहां पर आपको महिला नागा साधु बनने के नियमों के बारे में जानकारी करवाऐंगे, कि किस तरह से एक महिला नागा साधु बनती है। इसलिए आज हम इस लेख के माध्यम से आपको पुरुष नागा साधुओं के बारे में नही बल्कि महिला नागा साधुओं के बारे में बताने जा रहे है, की वे कपड़े क्यों धारण करती है। तो आइए विस्तार पूर्वक जान लेते है।

सर्वप्रथम महिला नागा साधु बनने के लिए उस महिला का मुंडन किया जाता है। इसके अलावा अन्य साधु संत महिला संत से इस बात की पुष्टि कर लेते हैं, कि उस नागा साधू बनाने वाली महिला का अपने परिवार से मोह माया पूर्ण रूप से खत्म हो चुका है। नागा साधु बनने के लिए अपने सभी रिश्तों और रिश्तेदारों का भी त्याग करके सांसारिक सुखों से भी अपने आपको उससे दूर कर लेती है। वह अब अपने परिवार से दूर हो चुकी है, और अब उसे किसी भी बात का मोह माया नही है। यह सब सिद्ध हो जाने के बाद वह महिला दीक्षा लेकर नागा साधू बन जाती है।

कुंभ में नागा साधुओं के साथ महिला सन्यासन को भी शाही स्नान करने की अनुमति हैं। महिला को नागा साधु बनने के बाद उसको पुरुष नागा साधू के समान नहीं रहना पड़ता है। महिला नागा सन्यासन निर्वस्त्र नहीं रहती है, उनको कपड़े पहनने की पूरी छूट रहती है। इसलिए तो महिला नागा साधुओं का त्याग पूरे विश्व भर में सराहा जाता हैं।


नागा साध्वी से जुड़ी की 11 बातें जो आपको हैरान कर देगी।

1. महिला नागा साधु साध्वी सन्यासिन बनाने से पहले अखाड़े के साधु-संत द्वारा महिला के घर परिवार और पिछले जीवन की जांच-पड़ताल अच्छे से कर लेते हैंं।

2. महिला नागा साधू को सन्यासन बनने से पहले उसको 6 से 12 साल तक का कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। और अगर इसके बाद गुरु यदि इस बात से संतुष्ट हो जाते हैंं, कि महिला ब्रह्मचर्य का पालन कर पूरी तरह से करने में सक्षम है, तो गुरु उसे दीक्षा देते हैंं।


3. महिला नागा साधु साध्वी सन्यासन बनाने से पहले उसका मुंडन किया जाता है, और उसे नदी में स्नान कराया जाता हैंं।

4. नागा साधु महिला साध्वी को भी नागा सन्यासन बनने से पहले स्वंयंं का पिंडदान और तर्पण करना पड़ता है।

5. जिस अखाड़े से महिला साध्वी सन्यास की दीक्षा लेना चाहती है, तो उसी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ही उसे दीक्षा देते हैंं।

6. कोई महिला जब गुरु द्वारा दीक्षा लेकर नागा सन्यासिन बन जाती हैंं, तो अखाड़े के सभी साधु-संत उन्हें उनके नाम से नही बल्कि माता कहकर सम्बोधित करते हैंं।


7. महिला नागा सन्यासिन दिन भर भगवान का जप करने में मग्न रहती है। प्रतिदिन प्रातः उसको ब्रह्म मुहूर्त में उठना होता है। और नित्य कर्मो से निवृत्त होने के बाद वह भगवान शिवजी का जप करती हैंं। दोपहर में भोजन करने के बाद पुनः शिवजी का जप करती हैंं। और संध्या के समय दत्तात्रेय भगवान की पूजा करके अपने शयन कक्ष में चली जाती है।

8. सिंहस्थ और कुम्भ में पुरुष नागा साधुओं के साथ–साथ महिला सन्यासिन भी शाही स्नान में सहभागी होकर स्नान करती हैंं। अखाड़े में जिस तरह पुरुष नागा साधूओं को मान सम्मान मिलता है, उसी तरह महिला नागा सन्यासिनो को भी अखाड़े में पूरा सम्मान दिया जाता है।


9. किसी भी महिला को नागा सन्यासिन बनने से पहले उसको यह सिद्ध करना होता है, कि उसका अपने परिवार और समाज के प्रति किसी भी तरह की कोई मोह माया नहीं है। वह सिर्फ और सिर्फ भगवान की भक्ति में लीन रहना चाहती है। इस बात की संतुष्टि होने के बाद ही अखाड़े के गुरु उसे दीक्षा ग्रहण करवाते हैंं।

10. एक महिला नागा साधु और पुरुष नागा साधु में सिर्फ इतना ही फर्क है, की महिला नागा साधु को अपने तन पर सदैव एक पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है, जिसे 'गंती' भी कहा जाता है। और धारण वस्त्र के साथ ही उसे स्नान भी करना पड़ता है।


11. किसी भी महिला नागा साधु को निर्वस्त्र होकर स्नान करने की अनुमति बिल्कुल भी नहीं है। यह नियम इतने कड़े है, की कुम्भ के मेले में भी यह महिला नागा साधु निर्वस्त्र होकर स्नान नही कर सकती है।

यह आर्टिकल आपको कैसा लगा नीचे Comment Box में अपनी राय लिखकर जरूर बताएं। अभी तक के लिए इतना ही, यह लेख यही पर समाप्त करके आपसे हाथ जोड़कर विदा लेता हूं। फिर मिलेंगे आपसे अगले अध्याय में।🙏




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपना किमती समय निकालकर यह आर्टिकल पढ़ने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। 🙏