सुकरात का जीवन परिचय || सुकरात के अमूल्य विचार |

 

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जीवन परिचय : सुकरात


सुकरात एक विख्यात यूनानी दार्शनिक थे। उनके बारे में कहा जाता है, कि वह एक बहुत ही कुरूप व्यक्ति थे और बोलते अधिक थे। सुकरात को हमेशा से ही सूफ़ियों की भाँति मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना पसंद था। सूफ़ियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देते थे और उन्हीं की तरह ही पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार किया करते थे। वैसे तो सुकरात ने कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा। नौजवानों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष सुकरात पर लगाया गया और इसके लिए उन्हें जहर देकर मारने का दंड मिला।


अब आईए सुकरात के जीवन परिचय के बारे में भी थोड़ा जान लेते है…..


सुकरात का जन्म 470 ई.पू. में एथेन्स यानी यूनान के सीमाप्रान्त के एक गांव में हुआ । उनके पिता सोफ्रोनिसकस, एक संगतराश यानी पत्थर काटने या गढ़नेवाला मजदूर थे और उनकी माता दाई का काम करती थीं। सुकरात ने अपना शुरुआती जीवन एथेंस में ही व्यतीत किया था। प्रारंभ में तो सुकरात ने अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाया और उनकी सहायता की। लेकिन बाद में वह सेना की नौकरी में चले गये और  वह पैटीडिया के युद्ध में बहुत ही वीरतापूर्वक लड़े थे। अपनी वार्ताओं के कारण ही सुकरात अपने समय के सबसे अधिक ज्ञानवान व्यक्ति समझे जाते थे। कुछ समय तक सुकरात एथेंस की काउंसिल के सदस्य भी रहकर वहां उन्होंने पूरी इमानदारी और सच्चाई के साथ काम किया, उन्होंने कभी भी कोई भी गलत का साथ नहीं दिया। चाहे अपराधी हो या निर्दोष, उन्होंने किसी भी व्यक्ति के साथ कभी भी गलत नहीं होने दिया।


सुकरात का वैवाहिक जीवन…


वैसे तो सुकरात के दो विवाह हुए थे। उनकी पहली पत्नी का नाम 'मायरटन' था। उससे सुकरात को दो संतान प्राप्त हुए थे। जबकि दूसरी पत्नी का नाम था 'जैन्थआइप'। उससे भी एक संतान थी..


व्यक्तित्व...


जैसा की आपको पहले ही बता चुके है, की सुकरात देखने में कुरूप और बोलते बहुत थे। कुछ विद्वानों के अनुसार सुकरात को एथेंस में उत्पन्न महानतम व्यक्तियों से भी महान् व्यक्ति माना जाता है। सुकरात एक उच्च कोटि के मनीषी तो थे ही, वह शत-प्रतिशत ईमानदार, सच्चे एवं दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति भी थे। वह धर्म के संस्थागत रूप को न मानकर धर्म के सैद्धांतिक पक्ष को मानने वाले थे। जहां उनकी मान्यताएं ईसाई धर्म की मान्यताओं के निकट थीं वहीं सुकरात सुबह ही अपने घर से निकलकर लोगों को उपदेश देने के लिए निकल पड़ते थे। वह लोगों को सच्चा तथा सही ज्ञान प्रदान करके उनका सुधार करना चाहते थे।


मानव सदाचार पर जोर...


सुकरात को सूफ़ियों की भाँति मौलिक शिक्षा और आचार द्वारा उदाहरण देना पसंद था। वस्तुत: उनके समसामयिक यानी संवाददाता भी उन्हे सूफ़ी समझते थे। सूफ़ियों की भाँति साधारण शिक्षा तथा मानव सदाचार पर वह जोर देते थे और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर प्रहार करते थे। वह कहते थे- "सच्चा ज्ञान संभव है, बशर्ते उसके लिए ठीक तौर पर प्रयत्न किया जाए और जो बातें हमारी समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें तत्संबंधी घटनाओं को हम बारीकी से परखें, और फिर इस तरह अनेक परखों के बाद हम किसी एक सचाई पर पहुँच सकते हैं। क्यों की इस दुनिया में ज्ञान के समान पावन कोई वस्तु नहीं है।"


जीवन दर्शन...


वैसे तो बुद्ध की भाँति सुकरात ने कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवन काल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु कर दिया था, जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह सुविधा नहीं है। क्यों की सुकरात का क्या जीवन दर्शन था? यह तो उनके आचरण से ही भलीभांति मालूम होता है, लेकिन उनकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुकरात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं, कि वह एक भोगी थे। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उनकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उन्हें सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं।


उन्होंने हमेशा धर्म सम्बन्धी भ्रामक प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रश्नोत्तर प्रणाली का प्रयोग किया और कहा कि हम सब अज्ञानी हैं । और सबसे बड़ा अज्ञानी तो मैं स्वयं हूं । इसलिए मैं तुम सबमें बुद्धिमान भी हूं; क्योंकि मैं अपनी अज्ञानता के बारे में स्वयं जानता हूं । क्यों की आत्मा स्वयं ईश्वर है । आत्मा कभी नहीं मरती । शरीर मर जाता है । अत: आत्मा को सर्वश्रेष्ठ गुणों से युक्त बनाओ । यही सत्य है ।


दुनिया में बुद्धि ही सबसे बड़ा सदगुण है । बुद्धिमान व्यक्ति हर परिस्थिति में सन्तुलित रहता है । शिक्षित व्यक्ति उचित-अनुचित का विवेक कर सकता है । अत: सभी लोगों को शिक्षित होना चाहिए। एक बार सुकरात के शिष्यों ने उनसे पूछा कि चन्द्रमा में कलंक और दीपक तले अंधेरा क्यों रहता है?


सुकरात ने बड़ी ही खूबसूरती से इसका जवाब देते हुए कहा- “तुम्हें दीप का प्रकाश और चन्द्रमा की ज्योति नहीं दिखाई देती । उसी तरह संसार में प्रत्येक वस्तु के दो पहलू होते हैं । जो अच्छा देखना चाहते हैं, उन्हें सभी कुछ अच्छा ही दिखाई पड़ता है । जो बुरा देखना चाहते हैं, उन्हें सभी कुछ बुरा ही नजर आता है ।” मूर्ख और बुद्धिमान की पहचान बताते हुए उन्होंने अपने शिष्यों से कहा था कि जो अपने अनुभवों से लाभ न उठाये, वही मूर्ख है और जो अपने अनुभवों से सीखता है, वही बुद्धिमान कहलाता है ।


इस तरह अपनी तर्कपूर्ण बातों से उन्होंने आत्मा के स्वरूप, प्रकृति के सत्य, ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग, मृत्यु की सत्यता तथा शिक्षा, समाज, धर्म, राजनीति आदि विषयों को लोगों तक बड़ी ही सच्चाई से पहुंचाया ।


वैसे तो सुकरात को हवाई बहस पसंद नहीं थी। वह एथेंस के बहुत ही ग़रीब घर में पैदा हुए थे। गंभीर विद्वान और ख्याति प्राप्त हो जाने पर भी उन्होंने कभी भी वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उनके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उनके अधूरे कार्य को उनके शिष्य 'अफलातून' और 'अरस्तू' ने पूरा किया। उनके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है-


सुकरात पर मुक़दमा...


399 ईसा पूर्व में सुकरात के दुश्मनों ने सुकरात को खत्म करने में सफलता मिल गयी। उन्होंने सुकरात पर मुक़दमा चलवा दिया था। सुकरात पर मुख्य रूप से तीन आरोप लगाये गए थे-


उन पर प्रथम आरोप यह था कि वह देवी… देवताओं की उपेक्षा करके उनमे विश्वास नहीं करते थे। 


 दूसरे आरोप में यह कहा गया कि उसने राष्ट्रीय देवताओं के स्थान पर कल्पित जीवन देवता को स्थापित किया है।


और वहीं तीसरा आरोप यह था कि वह नगर के युवा वर्ग को गुमराह करके उन्हे भ्रष्ट बना रहे है।


उनके जो मित्र और शिष्य थे वह लोग यह कभी नहीं चाहते थे कि सुकरात की मौत ऐसे हो, उन्होंने उन्हें बचाने के लिए काफी कोशिश किए थे एक बार तो सारी व्यवस्था हो गई थी प्लेटो अपने कुछ दोस्तों के साथ सुकरात के पास आए और कहा कि “आप यहां से भाग जाइए हमने सारी व्यवस्था कर दी है ” लेकिन सुकरात चाहते तो भाग सकते थे लेकिन वह नहीं भागे और कहा कि “यदि मैं भाग गया तो मेरे पीछे का मेरा विचार मर जाएगा यदि मैं यहां रहा तो मेरा शरीर भले ही मर जाएगा और दोनों में से एक को चुनना हो तो मैं मरने के लिए अपने शरीर को चुनूंगा” । यह सब सुनकर प्लेटो निराश होकर वहां से लौट गए थे। इस घटना का जिक्र प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में उल्लेख की है।


जब उन तीनों आरोपो को लेकर सुकरात पर मुक़दमा चल रहा था, तब उन्होंने अपने बचावपक्ष में वकील करने से मना कर दिया और कहा कि "एक व्यवसायी वकील पुरुषत्व को व्यक्त नहीं कर सकता है।" सुकरात ने अदालत में कहा- "मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने एथेंसवासियों की सेवा में लगा दिया। मेरा उद्देश्य केवल अपने साथी नागरिकों को सुखी बनाना है,और कुछ नही। यह सभी कार्य मैंने परमात्मा के आदेशानुसार अपने कर्तव्य के रूप में किया है। क्यों की मैं परमात्मा के कार्य को आप लोगों के कार्य से अधिक महत्व देता हूँ। यदि आप मुझे इस शर्त पर छोड़ दें कि मैं सत्य की खोज छोड़ दूँ, तो मैं आपको धन्यवाद कहकर यह कहूंगा कि मैं परमात्मा की आज्ञा का पालन करते हुए अपने वर्तमान कार्य को अंतिम श्वास तक नहीं छोड़ सकूँगा। जहां तुम लोग सत्य की खोज तथा अपनी आत्मा को श्रेष्ठतर बनाने की कोशिश करने के बजाय सम्पत्ति एवं सम्मान की ओर अधिक ध्यान देते हो। क्या तुम लोगों को इस पर लज्जा नहीं आती।" सुकरात ने यह भी कहा कि "मैं समाज का कल्याण करता हूँ, इसलिए मुझे खेल में विजयी होने वाले खिलाड़ी की तरह सम्मानित किया जाना चाहिए।"


विष का सेवन...


सुकरात का वह भाषण सुनकर न्यायाधीश बहुत अधिक नाराज हो गए। क्योंकि सुकरात ने न्यायालय के प्रति अवज्ञा दिखाई थी। इसलिए न्यायाधीशों का अंतिम फैसला था कि सुकरात को मृत्यु दंड दिया जाए और उनको विष का प्याला पीना होगा। मृत्यु दंड की इस घोषणा को शान्त भाव से ग्रहण करते हुए उन्होंने कहा- “ठीक है । अब विदा का समय आ गया है । मेरे लिए मृत्यु है और आपके लिए जीवन । मैंने जो कुछ भी किया है, वह एथेन्स के नागरिकों को सुखी बनाने के लिए किया है । आप लोगों के आदेशानुसार मैं सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ सकता ।”और सुकरात को जिस समय मृत्युदण्ड सुनाया गया था, उस समय एथेन्स में धार्मिक उत्सव चल रहे थे । 


अत: यह सजा उन्हें एक माह बाद दी जानी थी । इसलिए उन्हें बेड़ियों से जकड़कर कारावास में रखा गया । एक महीने बाद जब निर्धारित समय आने पर सुकरात के सामने विष का प्याला रखा गया, तो उनकी पत्नी जैन्थआइप, उनका छोटा लड़का और क्रीटो वे सभी यह सब देखकर फूट-फूटकर रो रहे थे । विषपान करते हुए सुकरात जरा भी अवसादग्रस्त नहीं थे । वे अपने लिए रोते हुए लोगों को शान्त कर रहे थे । विष का प्रभाव धीरे-धीरे सुकरात को जीवनशून्य किये जा रहा था । और इस तरह 399 ई० पू० में वे इस मायारूपी संसार को अलविदा कह गये ।


सुकरात के अमूल्य विचार...


दुनिया में सबसे समझदार इंसान वह है, जो ये

जानता है कि मैं कुछ भी नहीं जानता


न्याय से पहले कुछ भी पसंद नहीं किया जाना चाहिए


मैं किसी को कुछ भी नहीं सिखा सकता,

मैं केवल उनकी सोच बदल सकता हूँ।


खुद को खोजने के लिए, अपने लिए सोचो


अभिमान मनुष्य को बांटता है, विनम्रता मनुष्य को जोड़ती है.


अंततः सुकरात अपने पूरे जीवन काल में एक भी पुस्तक नहीं लिखी फिर भी वह आज दुनिया को अपने विचारो से शिक्षित कर रहे हैं। सुकरात के अनुयायीओं में युवा बहुत थे। और प्लेटो उनके  बड़े शिष्य थे । सुकरात के जीवन और उनके विचारों के बारे में ज्यादातर उनके शिष्यों द्वारा लिखी गई दस्तावेजों से जानी जाती है।


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अपना किमती समय निकालकर यह आर्टिकल पढ़ने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। 🙏