100 साल से अधिक पुराना वायरलेस चार्जर।


वायरलेस मोबाइल का चार्जर कौन सी तकनीकी के किस फॉर्मूले पर काम करता है?

वायरलेस चार्जिंग आपको एक नए जमाने का आविष्कार लगता है। और अगर आपको भी यही लगता है,तो यह एक Technological Myth हैं। आपकी जानकारी के लिए आपको साफ कर दूं की वायरलेस चार्जर आज से 100 साल से अधिक की पुरानी उत्पत्ति है। इसका आविष्कार प्रसिद्ध सर्बियाई अमेरिकी आविष्कारक, निकोला टेस्ला के द्वारा इस नई Technology की खोज कि गई थी। वे भौतिक विज्ञानी, यांत्रिक अभियन्ता, विद्युत अभियन्ता और भविष्यवादी थे।

जैसे की रिचार्जेबल टूथब्रश और अन्य Bathroom के सामान में सन 1990 के दशक से ही inductive चार्जिंग का उपयोग किया जा रहा है।

इसलिए Inductive चार्जिंग का वही मूल फॉर्मूला आजकल के स्मार्टफोन के वायरलेस चार्जर पर भी लागू होता है।

वायरलेस चार्जर विद्युत चुंबकीय प्रेरक के माध्यम से चार्जर से फोन के पीछले हिस्से में लगे रिसीवर में ऊर्जा स्थानांतरित करके काम करती है। वायरलेस चार्जर के नीचे लगे इंडक्शन कॉइल, यह एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता है और ऊर्जा के क्षेत्र को प्रसारित करने के लिए यह एक एंटीना के तरह काम करता है। और फोन में एक दूसरा छोटा कॉइल ऊर्जा प्राप्त करके, उसका संचयन करता है, और इसमें लगे सर्किट इसे बैटरी के लिए उपयोग करने योग्य ऊर्जा में तब्दील कर देते है।


जब आप अपने स्मार्ट फोन अथवा किसी अन्य चार्जेबल डिवाइस को वायरलेस चार्जिंग पैड पर रखते हैं, तो उस डिवाइस में लगा एक छोटा कॉइल चुंबकीय क्षेत्र से ऊर्जा प्राप्त करके और उसका उपयोग बैटरी चार्जिंग के लिए करता है।

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