यह कहानी है, मुग़ल साम्राज्य का सबसे बहादुर और शांतिप्रिय राजा जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर की है…
मुग़ल शासनकाल में अब तक जितने भी राजा महाराजा हुए उन सभी में अकबर ही सबसे अलग प्रभावशाली, शांतिप्रिय और शक्तिशाली राजा थे। उनके बारे में सबसे खास बात तो यह है की उन्होने अपने बचपन से राज्य को चलाने की कमान अपने हाथ में ले ली थी।
जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर मुगल साम्राज्य के तीसरे मुगल सम्राट थे, जो कि महज 13 साल की छोटी सी उम्र में ही मुगल राजवंश के सिंहासन पर विराजमान हुए थे और उन्होंने अपने मुगल सम्राज्य का न सिर्फ काफी विस्तार किया, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देने के लिए कई सारी नई नीतियां भी बनाईं। उन्होंने अपने शासनकाल में शांति का माहौल स्थापित करके एवं कराधान प्रणाली को पुनः संगठित किया। उन्हें अकबर-ए-आज़म शहंशाह अकबर के नाम से भी जाना जाता था।
वैसे तो अकबर खुद अनपढ़ होने के बावजूद भी शिक्षा को सबसे अधिक महत्व देते थे। लेकिन वे एक बुद्धिमान और ज्ञानी शासक थे, जिन्हें लगभग सभी विषयों का आसाधरण ज्ञान प्राप्त था। इसीलिए उनके शासन काल में कला, साहित्य, शिल्पकला का काफी विकास हुआ । उन्होंने अपने राज्य में सभी के लिए विशेषरूप से महिलाओ के लिए शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया था।
मुगल काल में उनके द्धारा किए गए नेक कामों की वजह से ही उन्हें अकबर महान कहकर भी संबोधित किया जाता था। वे सभी धर्मों को आदर-सम्मान देने वाले एक महान योद्धा थे, कई अलग-अलग धर्मों के तत्वों को इकट्ठा कर अकबर ने नया संप्रदाय दीन-ए-इलाही की स्थापना की थी। वहीं उनकी पहचान सभी मुगल शासकों में से एकदम अलग थी, तो आइए जानते है, मुगल वंश के शासक सम्राट अकबर की जीवनी के बारे में-
जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर का प्रारंभिक जीवन ….
जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर जो साधारणतः अकबर और फिर बाद में महान अकबर के नाम से जाने जाते थे। वह भारत के तीसरे और मुग़ल साम्राज्य के पहले सम्राट थे। वे सन 1556 से उनकी मृत्यु तक मुग़ल साम्राज्य के शासक बने रहे। अकबर मुग़ल शासक हुमायु के बेटे थे, जिन्होंने पहले से ही मुग़ल साम्राज्य का भारत में विस्तार कर रखा था।
जहां सन 1539 तथा 1540 में चौसा और कन्नौज में होने वाले शेर शाह सूरी से युद्ध में पराजित होने के बाद हुमायु की शादी हमीदा बानू बेगम के साथ हुयी, और जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर का जन्म 15 अक्टूबर सन 1542 को सिंध के उमरकोट में हुआ जो अभी पाकिस्तान में है। लम्बे समय के बाद, अकबर अपने पुरे परिवार के साथ काबुल स्थापित हो गए। जहां उनके चाचा कामरान मिर्ज़ा और अस्करी मिर्ज़ा रहते थे। उन्होंने अपने बचपन का बहुत सारा समय युद्ध की कला सिखने में व्यतीत किया जिसने उन्हें आगे चलकर एक शक्तिशाली, निडर और बहादुर योद्धा बनाया।
जब भी हम या आप मुगल बादशाह अकबर की बेगमों के बारे में बात करते हैं, तो हमारे जहन में सबसे पहला नाम जोधा बाई का आता है। लेकिन यह सत्य नही है, उनकी पहली पत्नी का नाम रुकैया सुल्तान बेगम था और उन्होंने उनसे सन 1551 के नवम्बर में अपनी 9 वर्ष की कम आयु में मंगनी कर 14 वर्ष आयु में उनसे विवाह कर लिया था। महारानी रुकैया उनके ही सगे चाचा हिंदल मिर्ज़ा की बेटी थी। रुकैया बेगम मुगल साम्राज्य की सन 1557 से लेकर 1605 तक मलिका थीं। क्योंकि ये मुगल साम्राज्य के तीसरे बादशाह अकबरकी पहली बेगम यानि पत्नी थीं। हालांकि रुकैया बेगम अकबर की बेहद खास और पसंदीदा बेगम थीं।
बाद में हिंदल मिर्ज़ा की मृत्यु के बाद हुमायु ने उनकी जगह ले ली और हुमायु ने दिल्ली को सन 1555 में पुनर्स्थापित किया और वहा उन्होंने एक विशाल सेना का निर्माण किया। और इसके कुछ ही महीनो बाद यानी दिनांक: 1 जनवरी सन 1556 को दीन पनाह भवन में सीढ़ियों से गिरने की वजह से हुमायूं की मौत हो गई।
यूं अपने पिता हुमायु के अकस्मात गुजर जाने के बाद अकबर ने बैरम खान की मदत से राज्य का शासन अपने हाथो में लेकर चलाया क्यों की उस वक्त अकबर काफी छोटे थे। उन्होंने बैरम खान की सहायता से पुरे हिंदुस्तान पर हुकूमत की अकबर एक बहुत ही सक्षम और बहादुर बादशाह होने के नाते उन्होंने पुरे हिंदुस्तान में और अपने करीब गोदावरी नदी के उत्तरी दिशा तक पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया था।
मुगलों की ताकतवर फ़ौज, राजनयिक, सांस्कृतिक आर्थिक वर्चस्व के कारण ही अकबर ने थोड़े ही समय में पुरे देश पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था। अपने मुग़ल साम्राज्य को एक रूप बनाने के लिए अकबर ने जो भी प्रान्त जीते थे उनके साथ में या तो संधि की या फिर वहां की राजकुमारियां से शादी करके उनसे रिश्तेदारी मजबूत की।
अकबर के राज्य में विभिन्न धर्म और संस्कृति के लोग रहते थे और वो अपने प्रान्त में शांति बनाये रखने के लिए कुछ ऐसी योजना अपनाते थे जिसके कारण उसके राज्य के सभी लोग अपने राजा से काफी खुश रहते थे।
साथ ही अकबर को साहित्य काफी पसंद था और इसलिए उन्होंने एक पुस्तकालय की स्थापना भी की थी, जिंसमे तकरीबन 24,000 से भी अधिक संस्कृत, उर्दू, पर्शियन, ग्रीक, लैटिन, अरबी और कश्मीरी भाषा की पुस्तके उपलब्ध थी और साथ ही वहां पर कई सारे विद्वान्, अनुवादक, कलाकार, सुलेखक, लेखक, जिल्दसाज और वाचक भी नियुक्त किए गए थे। खुद अकबरने फतेहपुर सिकरी में महिलाओ के लिए एक पुस्तकालय की भी स्थापना की थी। और हिन्दू, मुस्लीम के लिए भी स्कूल खोले गयें। पूरी दुनिया के सभी कवी, वास्तुकार और शिल्पकार अकबर के दरबार में इकट्टा होकर देश की उन्नति के लिए विभिन्न विषयों पर चर्चा किया करते थे।
जहां अकबर के दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सिकरी के दरबार…. कला, साहित्य और शिक्षा के मुख्य केंद्र बन चुके थे। वहीं वक्त के साथ पर्शियन इस्लामिक संस्कृति भी हिंदुस्तान के संस्कृति के साथ घुल मिल गयी और जिसमे एक नयी इंडो पर्शियन संस्कृति ने जन्म लिया और इसका दर्शन मुग़लकाल में बनाये गई पेंटिंग और वास्तुकला में देखने को मिलता है। अपने राज्य में एक धार्मिक एकता बनाये रखने के लिए अकबर ने इस्लाम और हिन्दू धर्मं को मिलाकर एक नया धर्मं ‘दिन ए इलाही’ को बनाया जिसमे पारसी और ख्रिचन धर्म का भी कुछ हिस्सा शामिल किया गया था।
जिस धर्म की स्थापना अकबर ने की थी वो बहुत ही सरल, और सहनशील धर्म था और उसमे केवल एक ही भगवान की पूजा की जाती थी, और उसमे किसी भी जानवर को मारने पर सख्त मनाही थी । और इस धर्म में शांति पर ज्यादा महत्व दिया जाता था। इन धर्मो में ना ही कोई रस्म रिवाज, और ना कोइ ग्रंथ और नाही कोई मंदिर या पुजारी था। अकबर दरबार के बहुत सारे लोग भी इस धर्मं का पालन खुशी खुशी किया करते थे और वे लोग अकबर को अपना पैगम्बर मानते थे। वहीं उनके रत्नों में एक माने जाने वाले सबसे चतुर, चालाक और बुद्धिमान बीरबल भी इस धर्मं का पालन बड़ी ही निष्ठा पूर्वक किया करते थे।
प्राचीन भारत के इतिहास में अकबर के शासनकाल को काफी महत्व दिया गया है। अकबर शासनकाल के दौरान मुग़ल साम्राज्य तीन गुना बढ़ चूका था। उन्होंने अपने शासनकाल में बहुत ही प्रभावी सेना का निर्माण किया था और कई सारी राजनयिक और सामाजिक सुधारना भी लायी थी। अकबर को भारत के उदार शासकों में गिना जाता है। पूरे मध्यकालीन इतिहास में वे एक मात्र ऐसे मुस्लीम शासक हुए है, जिन्होंने हिन्दू मुस्लीम एकता के महत्त्व को समझकर एक अखण्ड भारत निर्माण करने का प्रयास किया। अकबर ने हिंदु राजपूत राजकुमारीयों से विवाह भी किया। उन्ही में से एक उनकी रानी जोधाबाई भी राजपूत घराने से थी। अगर इतिहास में झाककर देखा जाए तो हमें जोधा-अकबर की प्रेम कहानी विश्व प्रसिद्धि दिखाई देती है।
मुगल काल के वे ऐसे पहले मुग़ल राजा थे जिन्होंने मुस्लीम धर्म को छोड़कर अन्य धर्म के लोगो को बड़े बड़े पदों पर बिठाया था और साथ ही उनपर लगाया गया सांप्रदायिक कर भी ख़तम कर दिया था। अकबर ने तो जो लोग मुस्लिम नहीं थे उनसे कर वसूल करना भी छोड़ दिया और वे ऐसा करने वाले पहले सम्राट थे। हिंदुस्तान में विभिन्न धर्मो को एक साथ रखने की शुरुवात अकबर के समय ही हुई थी।
अकबर की वंशावली ….
वैसे तो जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर को पाच बेटे थे जिनके क्रमशः नाम इस प्रकार से है, जहाँगीर उर्फ सलीम, मुराद मिर्ज़ा, दानियाल मिर्ज़ा, हुसैन एवं हसन।
१. जहाँगीर: उर्फ सलीम
जहाँगीर उर्फ सलीम जो की अकबर के उपरांत मुग़ल बादशाह बना था, उसका जन्म अकबर की पत्नी जोधाबाई से हुआ था। जोधाबाई जो राजपूत राजा भारमल जी की बेटी थी जिसे मुग़ल साम्राज्य की प्रमुख रानी का पद एवं सम्मान दिया गया था। अकबर के पाच बेटों में से एक जहाँगीर था, जो हर वक़्त अकबर के मन के विरुध्द निर्णय लेने की वजह से हमेशा चर्चा में रहता था।
२. शहजादा मुराद मिर्जा:
शहजादा मुराद मिर्जा का जन्म अकबर की उप पत्नी से हुआ था, जो की अकबर के पाच बेटों में से एक था। इसकी मृत्यु जिवन के अत्यंत कम आयु में यानि के ३० वर्ष में हो गई थी। अकबर ने अपने सभी बेटों के बिच कभी भी कोई भेद भाव नहीं किया इसलिए मुराद और जहाँगीर का जन्मदिन एक जैसे शाही अंदाज में मनाया जाता था।
३. शहजादा दानियाल:
शहजादा दानियाल ये अकबर का तिसरा बेटा था जिसकी माता को अकबर ने गर्भवती अवस्था में सूफी संत दानियाल के यहाँ सुरक्षा हेतु छोड़ा था। उस समय अकबर गुजरात की मुहीम में व्यस्त थे, दानियाल का जन्म सूफी संत के घर पर हुआ था। हालांकि अकबरनामा में अबुल फजल ने दानियाल की मां का नाम कभी नहीं खोला लेकिन ये लिखा कि शहजादे दानियाल की मां सन 1596 में गुजर गई थी …
बाद मे एक माह की आयु से छह माह तक शहजादा दानियाल को राजपूत राजा भारमल जी की पत्नी के पास लालन पालन हेतु रखा गया। छह माह की आयु में शहजादा दानियाल को अकबर ने आगरा लाया, जहा वो बड़ा हुआ।
४. हुसैन एवं हसन:
हुसैन एवं हसन ये अकबर के दोनो बेटे रानी जोधाबाई से हुए थे जिनकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई थी।
इसके अलावा अकबर को पाच बेटियां भी थी जिनके नाम आरम बानू बेगम, शाक्रूनिस्सा बेगम, खानम सुलतान बेगम, मेहेरुनिस्सा और माही बेगम इस प्रकार से था।
१. शहजादी शाक्रूनिस्सा बेगम:
अकबर की इस बेटी शहजादी शाक्रूनिस्सा बेगम का जन्म बेबी दौलत बेगम से फतेहपुर सिक्री में हुआ था।
२. शहजादी आरम बानू बेगम:
अकबर की यह बेटी शाक्रुनिस्सा बेगम की सगी बहन थी, जिसका जन्म भी बेबी दौलत बेगम की कोख से हुआ था। मेरा कहने का मतलब शहजादी शाक्रूनिस्सा बेगम और शहजादी आरम बानू बेगम यह दोनो एक ही मां की संतान थी।
३. खानम सुलतान बेगम:
खानम सुलतान बेगम ये अकबर की सबसे बड़ी बेटी थी, जिसे उसके अन्य नाम शहजादा खानम के नाम से भी जाना जाता था। इसकी माता का नाम बीबी सलीमा था जो के अकबर की उपपत्नियो में से एक थी। इसका विवाह उम्र के पच्चिसवे साल में मुजफ्फर हुसैन सफावी से हुआ था।
इसके अलावा मेहेरुनिस्सा और माही बेगम ये अकबर की दो और बेटियां थी, इस तरह अकबर के वंशावली का वर्णन ‘अकबरनामा’ और ‘आइन-इ-अकबरी’ इत्यादी ऐतेहासिक दस्तावेजो से उपलब्ध होता है। जिसमे अकबर के कुछ उपपत्नियो के नाम और उनकी संतानों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है।
आईए अब अकबर के नौ रत्नों के बारे में भी थोड़ी सी जानकारी ले लेते है। वैसे तो😀😀😀😀😀😀 इतिहास में अकबर और बीरबल के किस्से काफी मशहूर है, शायद ही दुनिया में कोई ऐसा शख्स हो जो की इस बात से नावाकिफ हो। यहां पर रत्नों से मेरे कहने का तात्पर्य इंसानों से है, न की हीरे, जावाहिरात और मोतियों से…
जिसमें राजा बीरबल, मियां तानसेन, अबुल फजल, फैजी, राजा मान सिंह, राजा टोडर मल, मुल्ला दो प्याजा, फकीर अज़ुद्दीन, अब्दुल रहीम खान-ए-खाना. जैसे नाम शामिल थे जो अपने अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे। एक तरह से देखा जाय तो अकबर अशिक्षित जरुर था, लेकिन उसे लगभग हर विषय में असाधारण ज्ञान था, साथ ही वह अपनी स्मरण शक्ति के लिए भी जाना जाता था, वो एक बार जो सुन लेता था, उसे दिमाग में हब हूँ वैसा ही छप जाता था।
वे सभी जब एक साथ दरबार में जमा होते थे तो वो नजारा काफी देखने लायक होता था। उन सभी को अकबर के नवरत्न का नाम दिया गया था। और उन सभी को इतिहास में अकबर का सबसे अहम नवरत्न माना जाता है। तब से लेकर कभी भी किसी भी राजा के दरबार में इस तरह के नवरत्न देखने को नहीं मिले। वो केवल महान शासक जलाल-उद्दीन मुहम्मद अकबर के दरबार में ही थे। उन नौरत्नो के बारे में कुछ विस्तार पूर्वक जानकारी की वे कौन थे और अकबर के नौ रत्न कैसे बने …
1.अबुल फजल
इनका पूरा नाम अबुल फजल इब्न मुबारक था | अबुल फजल ने अकबर के शासन काल की प्रमुख घटनाओं को कलमबद्ध किया था। उन्होंने ही अकबरनामा और आइन-ए-अकबरी की रचना की थी। इनका जन्म आगरा में हुआ था और इनकी हत्या वीरसिंह बुंदेला द्वारा सलीम ने करवाई थी, अबुल फजल ने पंचतंत्र का फारसी अनुवाद अनवर-ए-सादात के नाम से किया। इनके पिता का नाम शेख मुबारक था.. शेख मुबारक ने ही सन 1579 ई० में महजरनामा नामक दस्तवेज का प्रारुप तैयार किया फिर इसको अकबर ने इसको अपने शासन काल में जारी किया।
2.अबु अल-फ़ैज़
अबु अल-फ़ैज़, यानी फैजी अबुल फजल के सगे भाई थे जो फारसी में कविता लिखते थे, और जिन्हें अकबर ने अपने बेटे के गणित शिक्षक के पद पर नियुक्त किया था। वे मध्यकालीन भारत के फारसी कवि थे। इन्होंने ही लीलावती, महाभारत और गीता जैसे ग्रंथो का फ़ारसी में अनुवाद किया था।
3.तानसेन
कवि तानसेन अकबर के दरबार के एक विलक्षण संगीतज्ञ थे। संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के लिए एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है, कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुढ़कते हैं, ताल में। मियां की मल्हार राग इन्होंने ही बनाया था। इनके बचपन का नाम तन्ना मिश्रा या राम तनु पांडे था। तानसेन को दीपक राग का बहुत बड़ा ज्ञाता माना जाता था।
4.बीरबल
बीरबल का वास्तविक नाम महेशदास था। परम बुद्धिमान राजा बीरबल अकबर के विशेष-सलाहकार में से एक थे। हास्य-परिहास में इनके अकबर के संग काल्पनिक किस्से आज भी कहे जाते हैं। बीरबल कवि भी थे। ब्रह्म के नाम उन्होंने एक कवि के रूप में कविताएँ लिखी हैं जो भरतपुर संग्रहालय राजस्थान में सुरक्षित हैं। बीरबल बादशहा के नौरत्नो में से एक सबसे प्रिय रत्न थे|
5.राजा टोडरमल
राजा टोडरमल अकबर के राजस्व और वित्तमंत्री थे। इन्होंने भूमि-पैमाइश के लिए विश्व की प्रथम मापन-प्रणाली तैयार की थी। ये भरतपुर अलवर के पास हरसाना ग्राम के निवासी थे, अकबर के राज्य कि पैमाइस इन्होंने ही तैयार की थी। उत्तर प्रदेश राज्य के एकमात्र राजस्व प्रशिक्षण संस्थान,हरदोई का नाम इनके नाम पर राजा टोडरमल भूलेख प्रशिक्षण संस्थान रखा गया है, जहां आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, पीपीएस के अलावा राजस्व कर्मियों को भूलेख संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है। इन्होंने भूराजस्व की दहसाला पद्धति की शुरुआत की थी।
6.राजा मानसिंह
अकबर की सेना के प्रधान सेनापति महाराजा मानसिंह जयपुर के आम्बेर राजा भारमल के पुत्र थे। राजा मान सिंह, जिन्हें मिर्जा राजा के रूप में जाना जाता है, वे अकबर के वरदान साथियों में से एक थे, जो उस मंडली के सदस्य थे जिसे सम्राट नौरातन या "नौ रत्न" कहते थे। वह सन 1562 में अकबर के दरबार में शामिल हुए, जब अकबर ने आमेर के राजा बिहार मल की सबसे बड़ी बेटी से शादी की, जिसने मान सिंह को गोद लिया था। इन्होंने अकबर के आदेश पर अपने पुत्र दुर्जन सिँह को फांसी दे दी थी क्यों की दुर्जन सिँह पर अनारकली से सलीम को मिलने में सहायता करने का आरोप था जिसे बादशाह के विरुद्ध विद्रोह करार दिया गया.
7.अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना.
अब्दुल रहीम खान-ऐ-खाना एक प्रतिष्ठित कवि थे, और अकबर के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे। इन्होंने नगर शोभा नामक रचना की । इन्होंने बाबारनामा का फ़ारसी में अनुवाद किया था।
8.हकीम हुक्काम
फकीर अजिआओ-दीन उर्फ हकीम हुक्काम ये अकबर के निजी चिकित्सक यानी हकीम थे। वह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। ये अकबर के विश्वासपात्र मित्र थे। कही कही पर फकीर अजीमोद्दीन को भी नवरंत बताया गया है
9.मुल्लाह दो प्याजा..
मुल्लाह दो प्याजा अकबर के अमात्य यानी तथ्य वांछित थे…यह किसी की भी बात को काटने के लिए काफी प्रसिद्ध थे तथा यह खाने में दो और प्याज खाने के भी सौकिन थे। ये रसोइया थे मुल्ला दो प्याजा की मजार हरदा मध्यप्रदेश के हरदा जिले के हँडिया तहसील में बनी है, जहाँ मुगल बादशाह के समय दूर दराज से आने वाले यात्रीयों को रूकने के लिए बना गरह है, तथा इसे इस समय तेली की सराय के नाम से जाना जाता है। इन्हे भी अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक कहां जाता हैं।
मुगल सम्राट अकबर के जीवन की कुछ सबसे बड़ी उपलब्धियां –
जैसा की आपको पहले ही बता चुका हूँ की , मुगल वंश के महान सम्राट अकबर ने अपने शासनकाल में मुगल सम्राज्य का काफी विस्तार किया था, उन्होंने अपना सम्राज्य को भारत के उपमहाद्धीपों के ज्यादातर हिस्सों में फैला लिया था, उन्होंने अपना सम्राज्य उत्तर में हिमालय तक, पूर्व में ब्रहमनदी तक, उत्तर-पश्चिम में हिन्दुकश तक एवं दक्षिण में विंध्य तक फैला लिया था। फतेहपुरी सीकरी की स्थापना का श्रेय अकबर को ही जाता है। क्यों की अकबर ने चित्तौड़गढ़ और रणथम्भौर पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए पश्चिम आगरा की नई राजधानी फतेहपुर सीकरी की स्थापना की।
एक मुस्लिम शासक होते हुए भी अकबर ने हिन्दुओं के हित के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए और हिन्दुओं की तीर्थयात्रा के लिए दिए जाने वाले कर यानी टैक्स को पूरी तरह खत्म करके हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया एवं शांतिपूर्ण माहौल स्थापित किया।
अकबर की मृत्यु …
अंततः जलाल-उद्दीन मुहम्मद अकबर दिनांक 3 अक्तूबर सन 1605 को पेचिश के कारण बीमार हो गये लेकिन उसमे से वो कभी अच्छे नहीं हो पाए । उस दिन वे सलीम के पास आए और जैसा कि बादशाह अत्यधिक कमजोर होने के नाते अब बोल नहीं पा रहे थे, उन्होंने राजकुमार जहांगीर यानी सलीम को शाही पगड़ी पहनने का संकेत दिया। इसके बाद उनकी पेचिश की बीमारी धीरे-धीरे और भी खतरनाक होती चली गई और माना जाता है, कि उसी बीमारी के चलते हिंदुस्तान के महान सम्राट अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर, सन 1605 को हो गई । जिस समय यह सब हुआ उस समय अकबर फ़तेहपुर सीकरी में थे, इस कारण से कहा जाता है, की उनकी मौत फ़तेहपुर सीकरी में हुई थी। और उन्हें आगरा के सिकंदराबाद में दफनाया गया था।
आज के लिए बस इतना ही ….
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