ताजमहल का अनसुना इतिहास ?

 

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The Monument of love यानी प्यार की एक ऐसी जीती जागती स्मारक ताजमहल जिसे बनवाने और उसे सजाने में शाहजहां ने अपनी रूह तक निकालकर रख दी थी… 


ताजमहल दुनिया की अब तक सर्वश्रेष्ठ मकबरों में से एक है। ताजमहल बनाने के पीछे दफन है,,बहुत सारे ….राज .. त्याग और बलिदान …… यह उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित हाथी दांत-सफेद संगमरमर से बनी प्यार के एक जीती जागती स्मारक है। यह दुनिया के सातों अजूबो में से एक है।


संक्षेप में जाने ताजमहल का इतिहास …..


सोलहवीं शताब्दी में, इस मकबरे का निर्माण मुग़ल सम्राट जहाँगीर का पुत्र मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी सबसे अजीज पत्नी मुमताज़ महल के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के रूप में करवाया था।

मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 19 साल की उम्र में एक फ़ारसी राजकुमारी, मुमताज़ से शादी की। वैसे अगर इतिहास को खंगाला जाय तो उनकी कई पत्नियां थीं, लेकिन मुमताज के साथ उन्हें बहुत ज्यादा ही प्यार था। मुमताज अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध थीं।

आगरा ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण भी है।

मुगलों का सबसे पसंदीदा शहर होने के कारण उन्होंने ‍दिल्ली से पहले आगरा को अपनी राजधानी बनाया था । इतिहास के अनुसार इब्राहिम लोदी ने इस शहर को सन् 1504 में बसाया था। जिस समय इस शहर की स्थापना की गई, उस समय किसी ने यह कल्पना नहीं की होगी कि यह शहर पूरे विश्व में अपनी खूबसूरती के लिए परचम लहराएगा। 

ताजमहल जिसे बनाने  के लिए बगदाद से  कारीगर बुलवाये गये जो पत्थर पर घुमावदार अक्षरों को तराश सकता था। इसी तरह बुखारा शहर, जो मध्य एशिया में स्थित हैं, वहां से जिस कारीगर को बुलवाया गया वह संगमरमर के पत्थर पर फूलों को तराशने में निपुण था। विशालकाय गुंबदों का निर्माण करने के लिए तुर्की के इस्तम्बुल में रहने वाले दक्ष कारीगर बुलाया गये तथा मिनारों का निर्माण करने के लिए समरकंद से दक्ष कारीगर को बुलवाया गया।

इस प्रकार ताजमहल के निर्माण से पूर्व छ: महीनों पहले देश विदेश के अपने काम में महारत हासिल कारीगरों को तराश कर उनमें से 37 कुशल कारीगर इकट्ठे किए गए, जिनके देखरेख में बीस हजार मजदूरों के साथ ताजमहल का निर्माण किया गया। 

वैसे तो इतिहास ने स्मारक के निर्माणकर्ताओं के बारे में अधिक जानकारी नहीं छोड़ी है, लेकिन “उस्ताद अहमद लाहौरी” संभवत: इसके मुख्य वास्तुकार है, जो शाहजहाँ के साथ नियमित संपर्क में थे और उनकी इच्छाओं को बखूबी समझते भी थे। उस्ताद अहमद लाहौरी, जो फारसी मूल के भारतीय थे जिन्हें बाद में दिल्ली में लाल किले को डिजाइन करने का श्रेय दिया गया। निर्माण 1632 के आसपास शुरू हुआ और अगले दो दशकों तक बिना रुके निरंतर जारी रहा।

भारत, ईरान के फारस, यूरोप और ओटोमन साम्राज्य के लगभग 1,000 से अधिक हाथियों और 20,000 से अधिक श्रमिकों के साथ को ताजमहल तथा समाधि परिसर बनवाने के लिए लाया गया था।

तो आईये मुमताज महल के बारे में विस्तार पूर्वक जान लेते है …..

मुमताज महल मुगल सम्राट शाहजहाँ की सबसे प्रिय पत्नी थीं, जिनकी सुंदरता और प्यार की याद में शाहजहाँ ने ताजमहल नामक एक शानदार स्मारक का निर्माण करवा दिया था। शादी से पहले मुमताज महल का नाम अर्जुमंद बानो बेगम था और इनका जन्म अप्रैल, सन 1593 में उत्तर प्रदेश  के आगरा, में हुआ था। मुमताज महल अब्दुल हसन असफ खान नामक एक फारसी की पुत्री थीं, जिनको महान मुगल सम्राट जहांगीर के वज़ीर के रूप में सेवा करने का अवसर मिला था, और संयोगवश हसन असफ खान की बहन नूरजहाँ सम्राट की पत्नी बन गई।


जैसा कि इतिहास और किंवदंतियों यानी सुनी और पढ़ी गई कहावतों से पता चलता है कि अर्जुमंद बानो एक पवित्र मुस्लिम लड़की थी जो अत्यधिक सुंदर और सर्वंगुण सम्पन्न महिला थीं। मुमताज महल, प्रसिद्ध मीना बाजार जो हरम (हरम किसी एक पुरुष की अनेक स्त्रियों के रहने के उस स्थान को कहते हैं जहाँ अन्य मर्दों का जाना वर्जित होता है। यह प्रथा मध्य पूर्व से शुरु हुई और अब पाश्चात्य सभ्यता में इसे उसमानी साम्राज्य से जोड़कर देखा जाता है। दक्षिणी एशिया में इसको पर्दा प्रथा कहते हैं।) से जुड़ा हुआ निजी बाजार था, उसमें अपनी दुकान पर रेशम और कांच के मोती बेचा करती थीं, 


जहां सम्राट के सबसे बड़े बेटे राजकुमार खुर्रम यानी शाहजहां वहा घूमने टहलने अथवा खरीददारी करने आते थे और एक दिन यानी सन 1607 में उनकी मुलाकात मुमताज से हुई और तब से वह उनसे प्यार करने लगे और मुमताज भी शाहजहां को पसंद किया करने लगी थी। अपने पिता की मंजूरी लेने के बाद, उनकी शाही शादी मई 1612 में बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ हुई। 19 साल की उम्र में शादी करके मुमताज महल अपने पति की दूसरी और सबसे प्रिय पत्नी बन गईं।


अपने पिता जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के बाद, राजकुमार खुर्रम को शाहजहाँ के नाम से जाना जाने लगा था। मुमताज के लिए उनका प्यार इतना था कि उन्होंने अर्जुमंद बानो को मुमताज महल का नाम दे दिया, जिसका अर्थ है (‘महल का प्यारा आभूषण’........होता है)। इन दोनों की जोड़ी काफी अच्छी और प्रेरणादायक भी है, शाहजहाँ और मुमताज इन दोनों ने बहुत ही गम्भीरता और प्रेमपूर्वक शादी के रिश्ते को निभाया जो पूरे इतिहास में आज भी प्रसिद्ध है। राज्य में मुमताज महल अपनी अत्यधिक सुंदरता और नम्र स्वभाव के लिए जानी जाती थीं, शाहजहाँ ने अपनी रानी की सुंदरता की प्रशंसा को छंदों में वर्णन करने के लिए उस समय की जाने माने कई सारे कवियों को भी प्रेरित किया। मुमताज महल एक दयालु रानी थी जिसने अपने राज्य में प्रबन्ध व्यवस्था, महिलाओं की जरूरतों और बेसहारा लोगों पर विशेष ध्यान दिया। 


मुमताज महल ने राज्य के सभी कार्यों में आवश्यकता होने अपने पति का  साथ भी दिया। मुमताज को अपने विश्वसनीय साथी के रूप में सम्मानित करते हुए, शाहजहां ने उनके नाम पर शाही मुहर, मुहर उजाह, आगरा में खासमहल इत्यादि जैसे शानदार महल का निर्माण करवाया। मुमताज महल ने चौदह बच्चों को जन्म दिया, जिनमें से सात बच्चे जन्म के समय में ही मर गए थे। उनके बच्चों में से शहजादा दारा शिकोह को भविष्य के शाही शासकों में शामिल किया गया, जो अपने भाई और अगले मुगल वंश सम्राट, औरंगजेब से पराजित हुए थे।


मुमताज महल का जून 1631 में अपने चौदहवें बच्चे शहजादी गौहर आरा को जन्म देने के बाद, मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में निधन हो गया था और मरने से पहले मुमताज ने अपने पति से अपनी याद में स्मारक बनवाने की अंतिम इच्छा जाहिर की, जो सम्पूर्ण विश्व में उनके प्यार का प्रतीक होगी। राज्य में अचानक रानी की मौत पर दुख से पीड़ित सम्राट के साथ-साथ पूरा राज्य भी शोक में डूब गया।


हालांकि, शाहजहाँ ने मुमताज महल की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए भव्य स्मारक ताजमहल का निर्माण करवाया,जो की विश्व के सात अजूबों में से एक मानी जाती है…..और जो अपनी महिमा के कारण मानव सभ्यता के इतिहास में प्रेम और पवित्रता की स्मृति का प्रतीक है। आगरा में सफेद संगमरमर से बनी इस स्मारक को पूरा करने में लगभग 2 दशक याने 20 साल लगे, और मुमताज महल के अवशेषों को बुरहानपुर से लाकर ताजमहल में ही दफनाया गया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उनके प्यार के प्रति एक श्रद्धांजलि थी।

मुमताज महल का निधन:-


शाहजहां की बेगम मुमताज महल ने अपने 14वें बच्‍चे गौहर आरा के जन्‍म के दौरान 17 जून 1631 को शाहजहां की बाहों में ही अपना दम तोड़ दिया था। मुमताज अपनी 19 साल के वैवाहिक जीवन में 10 साल से ज्‍यादा समय तक गर्भवती रहीं। 

आईए उनके बारे में और कुछ सुने अनसुने तथ्यों को जान लेते है।

 

  1. दिनांक 17 मई 1612 को मुमताज महल और शाहजहां की शादी हुई। उन्‍होंने 14 बच्‍चों को जन्‍म दिया। इनमें से आठ लड़के और छह लड़कियां थीं। इनमें सिर्फ सात ही जिंदा बचे थे।


  1.  शादी के बाद मुमताज महल ने लगातार 10 बच्‍चों को जन्‍म दिया। 10वें और 11वें बच्‍चे के जन्‍म में पांच साल का अंतर था। 1627 में वो 12वीं बार गर्भवती हुईं। और दो साल बाद 1629 में 13वें बच्‍चे को जन्‍म दिया। 


  1.  14वें बच्‍चे को सन 1631 में जन्‍म देने के दौरान 30 घंटे की प्रसव पीड़ा से जूझते हुए मुमताज ने शाहजहां की बाहों में अपना दम  तोड़ दिया था।

 

4) "ताजमहल या ममी महल' के लेखक अफसर अहमद ने अपनी किताब में उन दर्दनाक पलों का वर्णन किया है। इतिहासकारों के अनुसार शाहजहां, मुमताज से बेहद प्‍यार करता था। वह मुमताज को कभी भी छोड़कर उनसे दूर जाना नहीं चाहता था।


5)  डेक्कन यानी साउथ इंडिया में खान जहां लोदी के विद्रोह को काबू करने के लिए शाहजहां को बुरहानपुर जाना था, तब उस समय मुमताज महल गर्भवती थीं। मुमताज की गर्भावस्था नजदीक होने के बावजूद शाहजहां ने उन्हें आगरा से 787 किलोमीटर दूर धौलपुर, ग्‍वालियर, मारवाड़ सिरोंज, हंदिया होता हुआ बुरहानपुर ले गया। उस समय यहां सैनिक अभियान चल रहा था।


6) लंबी यात्रा की वजह से मुमताज बेहद बुरी तरह थक गई थी और इसका असर उनके गर्भ पर पड़ा। जिसकी वजह से मुमताज को दिक्‍कत शुरू होने लगी। और फिर 16 जून, 1631 की  रात मुमताज को प्रसव पीड़ा बढ़ गई। 

 

7)  मुमताज जब प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी, उस वक्‍त शाहजहां डेक्कन यानी साउथ इंडिया के विद्रोह को खत्‍म करने के बाद की रणनीति बना रहा थे। उन्हे मुमताज के खराब हालत की सूचना मिली। लेकिन इस दौरान वह मुमताज के पास नहीं गए। उन्होंने अपने दरबानों से दाइयों को भेजने के निर्देश दिए।


8) मुमताज महल मंगलवार की सुबह से बुधवार की आधी रात तक दर्द से बुरी तरह परेशान रही। उस वक्त शाही हकीम वजीर खान भी उनके पास मौजूद थे। वह इसके पहले भी कई बार प्रसव के दौरान मुमताज के साथ रह चुका थे।


9)  30 घंटे की लंबी जद्दोजहद के बाद मुमताज ने आधी रात को एक बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम बाद में गौहर आरा रखा गया….लेकिन मुमताज बेहाल थी। बच्ची की जन्म के बाद वो बुरी तरह कांपने लगी और उसकी पिडलियां ठंडी पड़ने लगी। 


10) दाइयां और हकीम मुमताज महल के शरीर से हो रहे अत्यधिक रक्तस्राव को नहीं रोक नही पा रहे थे। वह दर्द से तड़प रही थी। इधर, शाहजहां ने अपने कमरे से कई संदेशवाहक भेजे, लेकिन दुबारा  कोई भी लौटकर नहीं आया। रात काफी हो चुकी थी….. आधी रात से ज्यादा का वक्त हो चुका था।


तब शाहजहां ने खुद ही हरम में जाने का फैसला किया, तभी उनके पास दूत से संदेश आया, की "बेगम अब ठीक हैं, लेकिन काफी थकी हुई हैं। बच्‍ची को जन्‍म देने के बाद मुमताज महल गहरी नींद में चली गई हैं। इसलिए उन्‍हें परेशान न किया जाए।"


यह सूचना मिलने के बाद शाहजहां भी सोने के लिए अपने कमरे में चले गए। सोने से ठीक पहले उनकी बेटी जहां आरा वहां पहुंची और उसने मां की बिगड़ती हालत के बारे में शाहजहां को बताया।  और जब शाहजहां हरम के भीतर पहुंचे, तो वहां उन्होंने  मुमताज को हकीमों से घिरा हुआ पाया। मुमताज दर्द से छटपटा रही थी। वह मौत के करीब थी। शाहजहां के भीतर पहुंचते ही शाही हकीम को छोड़कर बाकी तमाम लोग कमरे से बाहर निकल गए।


शाहजहां की आवाज सुनकर मुमताज ने अपनी आंसू से भरी आंखें खोलीं। और शाहजहां मुमताज के सिरहाने के पास बैठकर एक तक उन्हें निहार रहे थे। लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था  ……और अंत में उनकी गोदी में ही मुमताज ने अपनी आखिरी सांस ली…..और इस तरह एक सफल प्रेम कहानी का दुःखद अंत हो गया। …..यह सब लिखते लिखते मेरी भी आखें नम हो गई …


ताजमहल का डिजाइन और निर्माण-


मुमताज महल के सम्मान में मकबरे का नाम ताजमहल रखा गया था, मकबरे का निर्माण सफेद दूधिया संगमरमर से किया गया था जिसमें कीमती पत्थरों (जेड, क्रिस्टल, लापीस लजुली, नीलम और फ़िरोज़ा) को पिएट्रा ड्यूरा के रूप में जाना जाता है।

इसका केंद्रीय गुंबद 240 फीट यानी 73 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचता है और चारों कोनों पर खड़े मीनारों से घिरा हुआ है। मकबरे में धनुषाकार प्रवेश द्वार पर कुरान से कुछ छंद सुलेख में अंकित किए गए थे।

मकबरे के अंदर, एक अष्टकोणीय संगमरमर का कक्ष नक्काशी और कीमती पत्थरों से सुसज्जित है जो की मुमताज महल की नकली कब्र है। उसके वास्तविक अवशेषों वाली असली कब्र, बगीचे के स्तर पर नीचे रखी गई है।

दक्षिण गेट पर शिलालेख, और विशेष रूप से अब्द-उल-हक के विभिन्न हस्ताक्षर जिन्हें इमारतों में शिलालेख पर उकेरने का काम किया, यह दर्शाता है कि यह दरवाजा समाधि के अंत से पहले शुरू किया गया था और उसके बाद समाप्त हो गया था।

20 वीं शताब्दी के युद्ध के दौरान–


 20 वी शताब्दी के युद्व के दौरान सभी देश इस महान देश पर हमला करना चाहता था जो ताजमहल को एक विशेषाधिकार प्राप्त लक्ष्य बनाता है वे सभी …. देश को प्रतीकात्मक रूप से घायल करने के लिए, सबसे पहले इस स्मारक को नष्ट करने की सोच रखते थे। यही कारण है कि 20 वीं शताब्दी के दौरान इसे बार-बार इसके गुबंद को कवर किया गया था। 

क्यों कि हवाई हमले से इसे छिपाने और ध्यान भटकाने के लिए गुंबद के चारों ओर लकड़ी बांध दी गई थी, ताकि इसे हमला करने का आसान लक्ष्य न बनाया जा सके। उस समय ताजमहल का सबसे बड़ा दुश्मन लूफ़्टवाफे़ विमान था। युद्ध की समाप्ति से पहले, जापान ने भी कई बार ताजमहल को निशाना बनाने की कोशिश की। लेकिन वे इसमें असफल रहे।

बाद में ताजमहल की सुरक्षा को पहले से और भी कड़ा कर दिया गया, और सन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इसपर पड़ोसी देशों से हमला होने से बचाने के लिए इसे बड़े बड़े हरे कपड़े  के साथ कवर करने का निर्णय लेकर उसे ढक दिया गया। ताकि दुश्मन की निगाह आसमान से ताजमहल पर ना पड़े और उन्हें लगे की यह कोई निर्माण का कार्य चल रहा है।

अंततः आईये अब हम कहानी का निचोड़ संक्षेप में जान लेते है ….

2. ताजमहल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने इसके शिखर पर सोने का एक कलश लगवाया था। इसकी लंबाई 30 फीट 6 इंच थी। कलश करीब 40 हजार तोले सोने से बनाया गया था। फिलहाल अब तो मौजूदा स्थिति में तांबे का गुंबज लगा है।

3. ताजमहल को सन 1857 में एक हमले के दौरान थोड़ा सा नुकसान हुआ था। लेकिन लॉर्ड कर्जन ने इसे 1908 में दुबारा ठीक करवा दिया था, क्योंकि तब तक इसे पूरे विश्व भर में ख्याति मिल चुकी थी।

4. ताजमहल की चारों मीनारों को इस प्रकार से बनाया गया है कि अगर भविष्य में कभी भी कोई भूकंप या उसपर बिजली गिरे तो यह मीनारें बीच वाले को गुबंद पर न गिरकर ताजमहल के चारो विपरीत दिशाओं की ओर गिरे…. इसीलिए ताजमहल की चारों मीनारें बाहर की ओर थोड़ी सी झुकी हुई नजर आती है । कुछ इस तरह से….

5. ताजमहल का ढांचा पूरी तरह से लकड़ियों पर खड़ा हुआ है यह ऐसी लकडिया है जिसे मजबूत रहने के लिए नमी की जरूरत पड़ती है और उन लकड़ियों को यह नमी ताजमहल के बाएं तरफ बहाने वाली यमुना नदी से मिलती नहीं तो अब तक ताजमहल कब का गिर चुका होता ।

6. ताजमहल से प्रेरित होकर  विश्व में और भी कई सारी इमारतें बनी  वो है….बांग्लादेश, औरंगाबाद, महाराष्ट्र में बीबी का मकबरा, अटलांटिक सिटी, न्यू जर्सी स्थित ट्रम्प ताजमहल और मिल्वाउकी विस्कज़िन स्थित ट्रिपोली श्राइन टेम्पल भी इसमें शामिल हैं।

7. इन पत्थरों का ही कमाल है कि ताजमहल सुबह में गुलाबी, दिन में सफेद और पूर्णिमा की रात को सुनहरा नजर आता है।

8. ताजमहल के बहार जो लंबी सी पानी की झील है उसमे लगे सभी फव्वारे एक साथ काम करते है इनके नीचे एक टैंक कुछ इस तरह से बनाया गया है की टैंक भर जाने के बाद दबाव बनने पर ये फव्वारे एक साथ पानी छोड़ते हैं। कुछ इस तरह से।

9. ऐसा भी कहा जाता है कि जब ताजमहल का निर्माण पूरा हो गया  तब शाहजहां ने उन सभी कारीगरों , मजदूरो एवं शिल्पकार के हाथ कटवा दिए थे, जिससे वे ताजमहल जैसा महल दुनिया में दूसरा  कभी भी ना बन पाए। लेकिन इस बात का कोई भी पुख्ता सबूत नहीं है इतिहास के पास।

10.  ऐसा कहा जाता है कि बीवी की मौत से शाहजहां इतने टूट गए थे कि कुछ ही महीनों में उनके सारे बाल और दाढ़ी बर्फ सी सफेद हो गई थी. ऐसा लग रहा था कि जैसे  उनके चेहरे पर बर्फ की सफेद चादर चढ़ी हो…..


11.उस समय करोड़ों की लागत से ताजमहल का निर्माण 1632 ईस्वी में शुरू हुआ और 1648 ईस्वी में पूरा हुआ उस समय इसमें मकबरा, अतिथि गृह और दक्षिण की ओर का मुख्य दरवाजा शामिल था. बाहर के मुख्य प्रांगण तथा इसके विहार गलियारों का निर्माण का कार्य बाद में कराया गया ….जिनका निर्माण 1653 ईसवी में पूरा हुआ. इसमें सिर्फ मुमताज महल का मकबरा नहीं बल्कि शाहजहां का भी मकबरा बना है. उस समय इसके निर्माण की कुल लागत लगभग 3.2 करोड़ रुपये आंकी गई थी.


13. ताजमहल एक बड़ा सफेद गुंबददार मकबरा है जो चारो ओर से लंबी मीनारों से घिरा हुआ है. इसका बाहरी भाग सफेद संगमरमर से बना हुआ है. मुख्य भवन में शाहजहां और मुमताज महल की याद में दो मकबरे बनाए गए हैं. ऊपरी हिस्से में बने मकबरे केवल नकल मात्र हैं जबकि असली मकबरे इमारत के निचले हिस्से में मौजूद हैं


14.  ताजमहल में बने मकबरों के चारों ओर जो सुंदर जाली है उसमें बहुमूल्य पत्थर जड़े हुए हैं. ताजमहल के दोनों ओर लाल बलुआ पत्थर से बनी दो इमारतें है उनमें से एक मस्जिद और दूसरी सभागृह है. ताजमहल के परिसर में बगीचे भी हैं और एक लंबा खूबसूरती से डिजाइन किया गया पूल भी है.


15. किंवदंतियों यानी एक कहावत के अनुसार मुमताज महल मरते समय शाहजहां से चार चीजों का वादा लिया था पहला…वे ऐसी एक स्मारक का निर्माण करेंगे जो पुरे विश्व में प्यार का प्रतीक माना जाय……, दूसरा…मेरी मृत्यु के बाद फिर से शादी करेंगे, तीसरा….. अपने बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे, चौथा और आखिरी वचन वे उसकी हर पुण्यतिथि पर मकबरे का दौरा किया करेंगे. …हालांकि शाहजहां खराब स्वास्थ्य के कारण और अपने ही बेटे और सिंहासन के उत्तराधिकारी औरंगजेब द्वारा घर में नजरबंद रखे जाने के कारण अपना आखिरी वादा लंबे समय तक नहीं निभा सके. 

एक और कहावत यह भी है की जब बीमार शाहजहां को उनके अपने ही सगे बेटे औरंगजेब ने कैद कर लिया था तभी शाहजहां ने उनके सामने एक इच्छा रखी की मुझे ऐसी जगह कैद किया जाय जहां से मुझे ताजमहल का दीदार हो सके….और   अपने सामने की दीवार में लगे हीरे के माध्यम से अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे स्मारक को बड़ी ही निराशा भरी अपने बुढ़ी और नम आंखों से देखा करते थे.

16. ताजमहल दिन भर अपना रंग बदलता रहता है. चूंकि यह बना तो सफेद संगमरमर से है लेकिन इसपर सूरज की किरणें पड़ते ही इसका रंग पीला हो जाता है…. और जैसे ही धीरे-धीरे दिन खत्म होने लगता है तो यह नीले रंग में बदल जाता है. इसलिए कई लोगों ने इसे काव्यात्मक महत्व दिया है क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि इसके रंग में परिवर्तन मुमताज महल की मृत्यु के पहले और बाद में शाहजहां में आए बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है.


17. मुमताज की मौत बुरहानपुर में हुई लेकिन ताजमहल तो आगरा में है ….तो आईए इसके बारे में विस्तार पूर्वक जान लेते हैं की ऐसा क्यों हुआ….लेकिन क्या आप जानते हैं कि ताजमहल मूल रूप से आगरा में नहीं बनना चाहिए था. क्यों की मुमताज महल की मृत्यु बुरहानपुर में 14 वे बच्चे को जन्म देने के दौरान हुई थी. इसलिए बुरहानपुर को शुरू में मकबरे के स्थल के रूप में चुना गया था और शाहजहां ने ताजमहल के निर्माण के लिए ताप्ती नदी के किनारे एक जगह भी पसंद की थी. लेकिन बुरहानपुर स्मारक के निर्माण के लिए पर्याप्त सफेद संगमरमर की आपूर्ति नहीं कर सका. और यही वजह है कि मुमताज महल के अवशेषों को बुरहानपुर से आगरा ले जाया गया जहां ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ.


18. शाहजहां एक काला ताजमहल भी बनवाना चाहते थे कहावतों के अनुसार शाहजहां यमुना नदी के किनारे काले संगमरमर से एक ‘काला ताजमहल’ भी बनाना चाहते थे. लेकिन कथित तौर पर इस विचार को हमेशा के लिए छोड़ दिया गया क्योंकि शाहजहां को औरंगजेब ने कैद कर लिया था. नदी के उस पार के महताब बाग में काले संगमरमर के पत्थरों के खंडहर पाए गए… लेकिन 1990 के दशक में खुदाई से पता चला कि जमीन में दबे संगमरमर के पत्थर सफेद ही थे जो समय के साथ काले हो गए थे. यह वास्तव में एक अफवाह ही थी या शाहजहां की वास्तविक इच्छा…. इसका उत्तर इतिहास में आज भी कहीं गुम है।

19. ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन को ताजमहल से प्यार हो गया था और संयोग से स्मारक के अंदर एक लैंप है जिस पर उनका नाम लिखा हुआ है. लॉर्ड कर्जन ने वायसराय के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान पहले इस्तेमाल किए जाने वाले धुएं के मंद लैंप को बदलने का फैसला किया और दो मिस्र के विद्वानों और टोड्रोस बदिर नाम के एक कलाकार के साथ परामर्श करने के बाद ताजमहल के लिए एक लैंप का निर्माण शुरू करवाया. इस तरह शाहजहां और मुमताज महल के नकली मकबरे पर लटका हुआ कांसे का लैंप दो सालों में बनकर तैयार हुआ था. और उसके अंदर एक शिलालेख है: “मुमताज महल के मकबरे को लॉर्ड कर्जन वायसराय 1906 द्वारा प्रस्तुत किया गया.”


20. ताजमहल के निर्माण में कुल 1,000 से अधिक हाथी यातायात हेतु प्रयोग में लाए गए थे। पराभासी सफेद संगमरमर को राजस्थान से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप और कार्नेलियन लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न सफेद संगमर्मर में जडे़ गए थे?

21. ताजमहल के प्रवेश द्वार पर लिखा है- हे आत्मा, तू ईश्वर पास विश्राम कर। ईश्वर के पास शांति के साथ रह तथा उसकी पूर्ण शांति तुझ पर बरसे। इसी तरह ताजमहल के द्वार पर कुरान की और भी आयतें भी उकेरी गई हैं।


22. हिंदुओं की मान्यता के अनुसार ताजमहल वास्तव में एक शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है।मुख्य गुम्बद के किरीट पर कलश अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनातीं हैं, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है? पर इस बात का कोई भी पुख्ता सबूत नहीं पाया गया है इतिहास में…..

23.. हर साल 10 लाख से अधिक पर्यटक ताजमहल देखने आते हैं और 2007 में इसे विश्व के नए 7 अजूबों में शामिल किया गया था.

24. ताजमहल के किनारे यमुना नदी के सूखने पर आर्कोलॉजिस्ट का क्या कहना है आईए जान लेते है….जिस तरह यमुना नदी का पानी सूखता जा रहा है उसने ताजमहल को सुरक्षित रखने के प्रति आर्कोलॉजिस्ट की चिंता भी बढ़ा दी है इकोलॉजिस्ट का कहना है कि जिस तरह ताजमहल के किनारे बहने वाली यमुना नदी का पानी ज्यादा सूख जाएगा तो धीरे धीरे ताजमहल की बुनियाद में लगी आबनूस की लकड़ियों की नमी का स्तर 30 % काम हो जाएगी तो उस दिन ताजमहल में लगी आबनूस की लकड़ियां धीरे धीरे खराब होने लगेंगे और धीरे धीरे ताजमहल ढेर हो जायेगा तो अब आप समझ ही चुके होगे की जब ताजमहल की बुनियादो में पत्थर ही नही है तो फिर सीमेंट का क्या काम अब सोच रहे होंगे कि चलो बुनियाद तो लकड़ी की बनी है लेकिन उन यादों के ऊपर तो सारा पत्थर का काम है अब वह कैसे चिपकाया गया तो चलिए इस पर भी थोड़ी नजर डालते हैं ।

25. आजकल तो मार्बल चिपकाने के लिए कई तरीके मौजूद है … इस आधुनिक युग में जैसे की सीमेंट , जिनके जरिए संगमरमर के पत्थरों को आसानी से चिपका दिया जाता है……. हालांकि, उस समय तो यह आधुनिक सुविधा उपलब्ध नहीं थी इसलिए पत्थरों को चिपकाने के लिए या आधारशिला बनाने के लिए एक खास तरह का मटेरियल तैयार किया गया था. "द कंस्ट्रक्टर डॉट ओआरजी" के एक आर्टिकल के अनुसार, ताजमहल की नींव के लिए एक अलग सा घोल बनाया गया था, जिसका नाम ‘सरूज’ बताया जाता है. यह चिकनी मिट्टी, गुड़, दाल, चीनी, राल, गोंद आदि भी इसमें मिलाय गया था. इसके साथ ही ताजमहल का निर्माण हुआ और इसकी मदद से इसकी इतनी पकड़ है कि आज कई साल बाद भी ताजमहल भूकंप, तूफान, बारिश, धूप, गर्मी, सर्दी का डटकर मुकाबला कर रहा है….ऐसे में कहा जा सकता है कि ताजमहल का निर्माण सीमेंट की खोज से पहले ही हो गया था.

अंततः

वास्तव में, औरंगज़ेब जो की मुमताज़ महल और शाहजहाँ के तीसरे बेटे थे उन्होंने 1658 में अपने बीमार पिता को गिरफ्तार कर लिया और खुद को सत्ता में ले लिया। शाहजहाँ ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष आगरा के किले में घर की गिरफ्तारी के दौरान गुजारे ….अंतिम वक्‍त तक उनकी बड़ी बेटी जहांआरा उनके साथ रही। कैद में शाहजहां को सारी सुविधाएं थी। आठ साल की कैद के बाद जनवरी 1666 में शाहजहां फिर से बीमार पड़े और मौत हो गई। 

जब 1666 में शाहजहां की दुखद मृत्यु हो गई, तो उन्हे भी मुमताज महल की स्मारक के बगल में दफनाया गया।  मरने की बाद भी दो प्रेम की निशानियां जिंदा है, जो आज भी दुनिया में प्रेम का प्रतीक बना हुआ है।

आजकल रोजाना जो हजारों  सैलानी ताजमहल को देखने आते हैं  वे यह नहीं जानते की जो वो सामने देख रहे हैं वह ताजमहल का पिछला हिस्सा है और जो शाही दरवाजा है वह यमुना नदी के किनारे दूसरी तरफ है आज अधिकतर सैलानी ताज को वैसा नहीं देख पाते जैसा कि शाहजहां चाहते थे मुगल काल में ताजमहल तक पहुंचने के लिए यमुना नदी ही मुख्य रास्ता थी उस जमाने में यह एक तरह का हाईवे हुआ करता था बादशाह और उनके शाही मेहमान नाव में बैठकर ताजमहल आते थे वही नदी के किनारे एक चबूतरा हुआ करता था जैसे जैसे नदी बढ़ती गई वह चबूतरा नष्ट हो गया…. बादशाह और उनके मेहमान उसी चबूतरे से ताजमहल जाया करते थे. 



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