आपको अधिक जानकारी के लिए बता दूं, की ऐसी ही एक घटना सन 1996 में घटी थी जब रामनाथ गोगोई को उल्फा गतिविधियों के लिए सेना ट्रिब्यूल ने फांसी की सजा दी थी। फांसी की सजा देते समय रामनाथ गोगोई रस्सी से फिसल गया लेकिन गर्दन फिसलने की वजह से रामनाथ गोगोई अपनी ठुड्डी से लगभग डेढ़ मिनट तक लटका रहा, लेकिन उसकी मौत नही हुई तब उनके परिवार ने कोर्ट में एक अपील दायर की, और कहा की उनकी सजा को कानून के रूप में अंजाम दिया जाए।
जिसमे साफ़ साफ़ यह कहा गया था, की सजा पाए किसी भी व्यक्ति को मरते दम तक गर्दन से लटका कर रखा जाय। लेकिन इस केस में रस्सी तुरंत गर्दन से फिसल गयी इसलिए जज ने कहा की गले से लटका हुआ काम पूरा हो गया था और संबंधित व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई थी। इसलिए उसे फिर से फांसी नहीं दी जा सकती थी और भारत में इस प्रकारों की अन्य कोई निष्पादन विधि उपलब्ध नहीं है।
इसलिए न्यायालय ने रामनाथ गगोई को दुबारा फांसी की सजा न देकर आजीवन कारावास की सजा दी। उच्च न्यायालय ने इस फैसले की पुष्टि की हालांकि वर्ष 2009 में मुंबई में हुए आतंकी हमले का इकलौता जिंदा पकड़ा गया आतंकवादी अजमल कसाब के संबंध में एक जनहित याचिका के तहत उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट फैसला सुनाया कि जब तक मौत न हो जाए तब तक उसे फंदे पर से झूलते रहने दिया जाना चाहिए।
इसका मतलब यह हुआ कि अब आगे से अगर रस्सी टूट भी जाय तो उसे फिर से मृत्यु हो जाने तक फांसी के फंदे पर लटकाए जाय। इसलिए उसके बाद फांसी की सजा के नियमों में संशोधन करके सजा देते समय उसमे Hang Till Death लिखा जाने लगा। जिससे अगर कभी ऐसी रस्सी टूटने या अन्य कोई घटना हो जाय तो उसे दुबारा फांसी पर लटकाया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया सहिंता–1898 में फांसी की सजा का प्रावधान बताया गया है। इसलिए ‘सीआरपीसी' दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में भी यही तरीका अपनाया गया था। उपरोक्त प्रक्रिया की धारा 354(5) में यह लिखा गया है,की जब किसी अपराधी व्यक्ति को मौत की सजा सुनाई जाती है, तो उस सजा का यह निर्देश होगा कि दोषी व्यक्ति को तब तक गर्दन से लटका दिया जाए जब तक की फांसी के फंदे पर उसकी मृत्यु न हो जाय।
अंततः इसका अर्थ यह कहता है,की "मृत्यु तक लटका हुआ"–Hang Till Death। किंतू पहली बार रामनाथ गगोई यानी इस दोषी व्यक्ति को मृत्यु तक फांसी नहीं दी गई थी, उदाहरण जैसा कि रस्सी टूट गई या फिसल गई ऐसी स्थिति में उस फांसी को सफल नहीं माना जाता है। इसलिए आगे से फांसी की सजा में आवश्यक संशोधन करने के बाद। अगर ऐसी रस्सी टूटने या फिसलने की घटना दुबारा घटीत होती है,तो उस दोषी व्यक्ति को फांसी देने के लिए नियमों में अधिकार स्वतंत्र है।
मृत्युदंड कैसे दिया जाएगा- CRPC धारा 354(5)
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354(5) के अंतर्गत मृत्युदंड का निर्देश दिए जाने पर दोषी के गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाए जाने का नियम बताया गया है। जब तक सजा पाए दोषी व्यक्ति की मृत्यु न हो जाए। ऐसे ही एक याचिका श्रीमती. शशि नैय्यर बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने इस धारा को संवैधानिक तथा न्याय हित में माना है। इस वाद में उच्चतम न्यायालय के समक्ष धारा 354(5) को संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया गया था। लेकिन न्यायालय ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया।
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