जूना अखाड़े की विदेशी संन्‍यासिन।


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सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि यह सब हमेशा से ही विदेशियों को आकर्षित करता रहा है, फिर चाहे वो महिला हो अथवा पुरुष लेकिन अब बड़ी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है। जूना अखाड़े में लगभग दस हजार से अधिक महिला साधु-संन्यासी हैं। इसमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी बड़ी तादात में है। खासकर इसमें यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ा है। यह भली भांति जानते हुए भी कि नागा साधू बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद भी इस विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।



वर्ष: 2013 के कुंभ में फ्रांस की कोरिने लियरे 'नागा साधु' बनी थीं। इसलिए उन्हें नया नाम दिव्या गिरी दिया गया। वैसे दिव्या ने 2004 में ही साधु की दीक्षा ले ली थी। लेकिन कठिन तपस्या करने के बाद उन्हें नागा साध्वी का पद मिला। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाइजिन नई दिल्ली से मेडिकल टेक्नीशियन की पढ़ाई पूरी की थी। उनका कहना है, कि महिलाएं कुछ चीजे अलग से करना चाहती है। 


वह कहती है, कि अब यही हमारी नई पहचान है। भगवा कपड़ों में लिपटी दिव्या बताती है। आज भी अखाड़ों में पुरुष और महिलाओं में समानता नहीं आई है। फ्रांस की एक महिला जो अपना पुराना नाम नहीं बतातीं, लेकिन दीक्षा लेने के बाद उनका नाम अब संगम गिरि है। संगम गिरि ने अपने लिए महिला गुरुओं की तलाश शुरू कर दी है। एक नागा साधु को पांच गुरु चुनने की अनुमति होती हैं।


"निकोले जैकिस" New York में फिल्म निर्माण से जुडी महिला थीं। वह वर्ष: 2001 में साधु बन चुकी है। निकोले जैकिस का ऐसा मानना है, कि आज भी भारत में महिलाएं अपने जीवन में पुरुषों पर ही निर्भर रहती है। कभी पिता कभी पति और कभी बेटे पर, लेकिन पश्चिम देशी में ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। 

वहां की महिलाएं आत्मनिर्भर रहती है। महिला नागा साधु अपने अखाड़े में नई–नई तकनीक का भी इस्तेमाल खूब जमकर रही है। आपको बता दे की जूना संन्यासिन अखाड़ा में तीन चौथाई महिलाएं नेपाल से आई हुई है। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के दोबारा शादी करने को आज भी समाज स्वीकार नहीं करता। ऐसे मे यह विधवाएं अपने घर लौटने की बजाए साधु बन जाती है।


अब तक माई बाड़ा अखाड़े की अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं थी, और न ही उनकी धर्मध्वजा अलग थी। महिला साधुओं की सभी धार्मिक गतिविधियां जूना अखाड़े के साथ ही सम्मिलित थीं। इस बीच अखाड़े में महिला साधुओं की संख्या बढ़ने पर उन्होंने अपने अलग अस्तित्व की मांग उठाई। 


उनकी मांग पर जूना अखाड़े ने प्रयागराज कुंभ 2013 में महिला संन्यासियों की मांग पर विचार करने को सभा बुलाई गई थी। इस सभा में उनकी सभी मांगे स्वीकार कर उन्हें मान्यता देकर महिलाओं के माई बाड़ा अखाड़े को भी जूना अखाड़ा में शामिल कर लिया गया था।

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