एडोल्फ हिटलर के अंतिम पल |


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 नाम : एडोल्फ हिटलर

जन्म : 20 अप्रैल सन 1889 ब्रौनौ ऍम इन्, ऑस्ट्रिया – हंगरी

मृत्यु– 30/04/1945

राष्ट्रीयता : जर्मनी

पिता : एलोईस हिटलर

माता : क्लारा हिटलर

भाई : बहन-गस्तव, इदा

पत्नी : ईवा ब्राउन


उस दिन 25 अप्रैल, 1945 के बाद से एडोल्फ हिटलर के जीवन का सिर्फ़ एक ही मक़सद रह गया था - और वो था खुद को मार देना का….? लेकिन ऐसा क्यों …आईए जान लेते हैं।


दिन था 25 अप्रैल सन 1945 का एडोल्फ हिटलर ने अपने पर्सनल बॉडीगार्ड  हींज़ लिंगे को पहले से ही बनकर में बुला कर कहा था, और उसे आदेश दिया था की "जैसे ही मैं अपने आप को गोली मारूँ तो उस समय तुम मेरे मृत शरीर को तुरंत बिनाविलंब किए चांसलरी के बगीचे में ले जा कर उसमें आग लगा देना. क्यों की मैं चाहता हूं की मेरी मौत के बाद कोई मुझे देखे नहीं और न ही पहचान नहीं पाए. इसके बाद तुम मेरे कमरे में वापस जाना और मेरी वर्दी, कागज़ और वो हर चीज़ जिसे मैंने अपने जीवन में इस्तेमाल किया है, उन सभी को इकट्ठा करके उसमें भी आग लगा देना. …. सिर्फ़ अंटन ग्राफ़ के बनाए गए फ़्रेडरिक महान के तैल चित्र को तुम्हें नहीं छूना है क्यों की उसे मेरे मरने के बाद मेरा ड्राइवर सुरक्षित बर्लिन से बाहर ले जाएगा."


देखा जाय तो अपने जीवन के अंतिम समय में हिटलर ज़मीन से लगभग 50 फ़िट नीचे गुप्त तरीके से बनाए गए बंकर में ही रहते ….काम किया करते और सोते थे ….उस समय अपने साथ में सिर्फ़ अपनी चहेती कुतिया ब्लांडी को कसरत कराने के लिए वो कभी कभी चांसलरी के बगीचे में जाया करते थे…. जहाँ पर चारों तरफ़ बमों के हमलों से ध्वस्त टूटी हुई इमारतों के मलबे पड़े होते थे…..


अंतिम समय में कौन कौन थे हिटलर के पास?


एडोल्फ हिटलर उस समय सुबह पाँच या छह बजे तक सोने जाते थे और आधी दोपहर के आसपास सो कर उठते थे. हिटलर की पर्सनल सचिव त्राउदी जुंगा ही  अंतिम क्षणों तक उस बंकर में हिटलर के साथ में रही थीं.


बीबीसी न्यूज से एक बार बात करते हुए उन्होंने कहा था, "वो आख़िरी दस दिन वास्तव में हमारे लिए एक बुरे सपने की तरह थे. हम बंकर में छिपे बैठे थे और रूसी सेना हमारे नज़दीक बेतहाशा बिना रुके चली आ रही थी. हम उनकी गोलीबारी, बमों और तोप के गोलों की आवाज़ को साफ़ साफ़ सुन सकते थे."


उस समय एडोल्फ हिटलर बंकर में बैठकर एक ही अनुमान लगाकर इंतजार कर रहे थे की कोई ना कोई आ कर उन्हें बचाएगा….. लेकिन एक बात उन्होंने पहले से ही साफ़ कर दी थी कि अगर युद्ध में उनकी जीत न होकर पराजय होती है …तो वो बर्लिन कभी नही छोड़ेंगे और अपने ही हाथों से अपनी जान ले लेंगे. इसलिए हमे पहले से ही अंदेशा हो गया था कि आगे क्या होने वाला है."


"जब 22 अप्रैल, सन 1945 को हिटलर ने हम सबको कहा कि अगर आप लोग चाहें तो बर्लिन छोड़कर बर्लिन से बाहर जा सकते हैं, उसपर उनकी प्रेमिका इवा ब्राउन सबसे पहले बोलीं, 'आपको तो पता है ना की मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती... मैं यहीं रहूंगी.' हर हाल में आपके साथ चाहे दिन कैसे भी हो अच्छे या बुरे….


बदल गए थे हिटलर


उसी दौरान एडोल्फ हिटलर के युद्ध उत्पादन मंत्री अल्बर्ट स्पीयर, उनसे मिलने और उनको अलविदा कहने उनके बंकर में आए थे. बाद में स्पीयर ने उन्हें याद करते हुए बताया कि तब तक हिटलर की शख़्सियत में काफी बदलाव आ चुके थे.


और वही अपने जीवन के अंतिम दिनों में हिटलर की हालत ऐसी हो गई थी कि उन पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता था बाकी कुछ नही… उनका पूरा शरीर बहुत कमजोर हो गया था ठीक से खड़े भी नहीं हो पाते थे  हिलने लगते थे. और उनके दोनो कंधे झुक गए थे जैसे किसी बूढ़े व्यक्ति के हो जाते है…... उनके कपड़े काफी गंदे थे और सबसे बड़ी बात ये थी कि उनका मेरे प्रति रुख़ बहुत नम्र था. मैं उनसे आखिरी बार मिलकर विदा लेने आया था. उन्हें भी पता था कि हम अब आख़िरी बार मिल रहे थे, लेकिन मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है कि उन्होंने मुझसे कोई ऐसी चीज़ कही हो जो दिल को छू लेने वाली हो." उनका बर्ताव कुछ अलग ही हो गया था….


हिटलर की उस समय के हालत के बारे में 'द लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ अडोल्फ़ हिटलर' लिखने वाले रॉबर्ट पेन ने भी अपनी किताब में किया है. पेन लिखते हैं,की "हिटलर का चेहरा सूज गया था और उसमें असंख्य झुर्रियाँ पड़ गई थीं. उनकी आंखों में ऐसा कुछ नजर आ रहा था की जैसे उनके जीवन जीने की इच्छा अब  खत्म सी हो गई हो……. और कभी कभी उनका दायां हाथ बुरी तरह से कांपने लगता था और उस कंपकपाहट को रोकने के लिए वो उसे अपने बाएं हाथ से उसे पकड़ते थे."


वही जिस तरह से वो अपने कंधों के बीच अपने सिर को झुकाते थे, उससे किसी बूढ़े गिद्ध का आभास होता था. उनके पूरे व्यक्तित्व में सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह थी, वे चलते समय ऐसे लड़खड़ा रहे थे की मानो जैसे कोई शराबी….  ऐसा शायद एक बम विस्फोट में उनके कान की एक बारीक झिल्ली को हुए नुकसान की वजह से हुआ था. वो थोड़ी दूर चलते और बीच में रुक रुक  कर किसी मेज़ को कोना सहारे के लिए पकड़ लेते. बीते 6 महीनों के भीतर में ही वो किसी दस साल बूढ़े से हो गए थे."


इसलिए उन्होंने बंकर में अपने अंतिम दिनों के दौरान ही यह तय किया कि वो अब अपनी प्रेमिका इवा ब्राउन से शादी कर उस रिश्ते को एक नाम देंगे…...


 अपनी किताब 'द लाइफ़ एंड डेथ ऑफ़ अडोल्फ़ हिटलर' में रॉबर्ट पेन लिखते हैं, "हिटलर के मन में सवाल यह उठा कि शादी कराएगा कौन? फिर गोएबेल्स को ख़्याल आया कि कोई वाल्टर वैगनर थे जिन्होंने उनकी शादी करवाई थी. लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये थी कि आखिरकार उनको ढूंढ़ा कैसे जाए ? फिर कहीं से उनका एक आखिरी पता मिला और उनके उस आख़िरी पते पर एक सैनिक को भेजा गया.जहां पर वाल्टर वैगनर सौभाग्यवश घर पर ही मौजूद थे …..शाम को बड़ी मुश्किल से मनाने के बाद  उन्हें हिटलर के बंकर में लाया गया. लेकिन वो अपने साथ शादी का सर्टिफ़िकेट लाना भूल गए."....


हिटलर की शादी


"जिसे लेने वो दोबारा अपने घर गए. और मैरेज सर्टिफिकेट लेकर वे वापस रूसियों द्वारा हो रही भयानक गोलाबारी के बीच मलबे से अटी पड़ी सड़कों से होते हुए वाल्टर वैगनर दोबारा हिटलर के बंकर में पहुंचे. उस समय शादी की पार्टी शुरू होने वाली थी और हिटलर और इवा ब्राउन बहुत बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहे थे. अंत में शादी होने के बाद हिटलर ने गोएबेल्स को और ब्राउन ने बोरमन को अपना गवाह बनाया."


लेखक रॉबर्ट पेन आगे लिखते हैं, "शादी के सर्टिफ़िकेट पर जब हिटलर के हस्ताक्षर करने की बारी आई तो उन्होंने ऐसा हस्ताक्षर किया की  वो एक मरे हुए कीड़े की तरह दीख रहा था. वही इवा ब्राउन ने अपने हस्ताक्षर में शादी से पहले वाला उनका नाम ब्राउन लिखना चाहा. उन्होंने 'बी ' लिख भी दिया. लेकिन उन्होंने क्या सोचा और फिर उन्होंने उसे काटा दिया और फिर साफ़ साफ़ इवा हिटलर ब्राउन लिखा. गोएबेल्स ने भी साक्ष बनते हुए मकड़ी के जाले से मिलता जुलता हस्ताक्षर किया लेकिन उसके पहले वो अपने नाम के आगे डाक्टर लगाना नहीं भूले. और वही सर्टिफ़िकेट पर तारीख लिखी थी 29 अप्रैल जो कि ग़लत थी, क्योंकि शादी होते होते रात के 12 बज कर 25 मिनट हो चुके थे. कायदे से उस पर 30 अप्रैल लिखा जाना चाहिए था."


शादी के बाद के भोज समारंभ में उनके दोस्त बोरमन, गोएबेल्स, माग्दा गोएबेल्स, जनरल क्रेब्स, जनरल बर्गडॉर्फ़, हिटलर की दोनो पर्सनल सचिव और उनका शाकाहारी रसोइया भी शामिल हुआ. इवा और हिटलर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सबने जाम उठाकर चीयर्स बोला . उस समय इवा ने काफ़ी शैंपेन पी ली वहीं हिटलर ने भी शैंपेन का एक घूंट लिया और पुराने दिनों के बारे में बातें करने लगे जब वो गोएबेल्स की शादी में शामिल हुए थे. और फिर पता नही अचानक ऐसा क्या हुआ की  एकदम से उनका मूड बदल गया और वो बोले, "सब ख़त्म हो गया. मुझे हर एक ने धोखा दिया."


अपने जीवन के आखिरी लम्हे में हिटलर ने कुछ समय की गहरे नींद ली और तरोताज़ा होकर उठे. (अब उन्हें नींद आई की नही यह तो उन्हें ही पता होगा क्यों की जायज सी बात है की मरने से पहले किसे नींद आती है) अक्सर ये देखा और किताबो में भी पढ़ा गया है कि मौत की सज़ा पाए कैदी अपनी मौत से पहले की रात चैन की नींद सोते हैं. लेकिन यहां पर आपको एक बात बता दूं की हिटलर कोई कैदी नही थे…. क्यों की उन्होंने अपने मरने का फैसला खुद से लिया था…. बाद में नहाने और शेविंग करने के बाद हिटलर अपने सभी जनरल अधिकारियों एवं दोस्तो से मिले. उन्होंने कहा कि अंत नज़दीक दिख रहा है. सोवियत की सेना किसी भी वक्त उनके बंकर में घुसकर हमला कर सकते है।


हिटलर ने मार ली गोली अध्याय …


रॉबर्ट पेन अपनी किताब में लिखते हैं, की "हिटलर ने प्रोफ़ेसर हासे को बुला कर पूछा कि क्या साइनाइड के कैपसुलो पर भरोसा किया जा सकता है अथवा नहीं ? फिर हिटलर  के मन में पता नही अचानक क्या आया की उन्होंने हासे को सलाह दी कि उनका यह परीक्षण उनकी सबसे प्रिय कुतिया ब्लांडी पर किया जाए. कुतिया पर परीक्षण के बाद हासे ने हिटलर को रिपोर्ट दी और कहा की , 'परीक्षण सफल रहा'. साइनाईट के कैप्सूल खिलाने के बाद ब्लांडी को मरने में कुछ सेकेंड से ज़्यादा नहीं लगे."


ब्लांडी के मरने के बाद हिटलर की ख़ुद से इस दृश्य को देखने की हिम्मत नहीं हुई. इसलिए ब्लांडी और उसके छह पिल्लों को एक बक्से में भरकर चांसलरी के बगीचे में लाया गया. पिल्ले छोटे होने की वजह से अभी तक अपनी माँ के स्तनों से चिपके हुए थे. तभी हिटलर के अंगरक्षक ओटे ग्वेंशे ने उन सभी पिल्लो को एक एक कर गोली मारी देखा जाय तो उस समय जब यह सब हुआ होगा तो वह दृश्य कितना भयानक और दर्दनाक होगा की किसी बेजुबान दुधमुहे बच्चो को बेवजह मार दिया गया…… और उस बक्से को बगीचे में ही दफ़न कर दिया गया."


यह सब होने बाद ढाई बजे हिटलर अपना आखिरी भोजन करने के लिए बैठे … और ओटो ग्वेंशे को आदेश दिया कि वो  200 लीटर तक पेट्रोल का इंतज़ाम करेके औऱ उसे केनों में भर कर बंकर के बाहरी दरवाज़े तक पहुंचा दिया जाए.


हिटलर के जीवनीकार इयान करशाँ लिखते हैं, की  "ग्वेंशे ने जब हिटलर के शोफ़र एरिक कैंपका को पेट्रोल के बारे में फ़ोन किया तो कैंपका ठहाके लगाकर हंसने लगे….. उनको या बात बखूबी पता थी कि चाँसलरी में पेट्रोल की कितनी भारी किल्लत है. वो बोले, की ' किसी को 200 लीटर पैट्रोल की क्यों आवश्यकता हो सकती है?' लेकिन ग्वेंशे ने आदेश के लहजे में कैंपका को कहा कि ये हंसने का वक्त नहीं है.. तभी कैंपका ने ग्वेनशे की बात को मानते हुए बहुत मुश्किल से लगभग 180 लीटर पैट्रोल का इंतेज़ाम कर तो दिया."


वही भोजन खत्म के बाद हिटलर अंतिम बार अपने साथियों से मिलने आए. उन्होंने बिना उनके चेहरों को देखे ही उन सभी से हाथ मिलाए उस समय इनकी पत्नी इवा ब्राउन भी उनके साथ में ही थीं.


इवा ब्राउन ने गहरे नीले रंग की पोशाक और गहरे भूरे रंग के इटालियन जूते पहन रखे थे और उनकी कलाई पर हीरों से जड़ी प्लेटिनम की घड़ी बँधी हुई थी. दोस्तो से मिलने के बाद  फिर वो दोनों कमरे में चले गए. तभी अचानक में एकदम से शोर सुनाई दिया और माग्दा गोएबेल्स दरवाज़े तक चिल्लाते हुए आई कि हिटलर को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए अगर उन्हें उनसे बात करने दी जाए तो वो उन्हें ऐसा न करने के लिए मना सकती हैं.


किसी से नहीं मिले हिटलर


गरहार्ड बोल्ट अपनी किताब 'इन द शेल्टर विद हिटलर' में लिखते हैं, "हिटलर का अंगरक्षक ग्वेंशे की लंबाई छह फ़ीट दो इंच की थी और बिल्कुल गोरिल्ला के शक्ल सूरत सा दिखता था. वही माग्दा दरवाजा खोलने की बात को लेकर  इतना ज़ोर दे रही थीं कि अंगरक्षक ग्वेंशे ने हिटलर के कमरे का दरवाज़ा खोलने का फ़ैसला किया. दरवाज़ा अंदर से लॉक नहीं था. फिर बिना दरवाजा खोले बाहर से ही ग्वेंशे ने हिटलर से पूछा कि क्या आप इस वक्त माग्दा से मिलना पसंद करेंगे? उस समय इवा का कोई पता नहीं था शायद वो बाथरूम में थी क्योंकि अंदर से पानी की आवाज़ आ रही थी. हिटलर मुड़े और ऊंची आवाज में बोले, की अब 'मैं किसी से नहीं मिलना चाहता.' इसके बाद उन्होंने अंदर से दरवाज़ा लॉक कर दिया."


वही दरवाज़े के ठीक बाहर खड़े हेंज़ लिंगे को पता ही नहीं चला कि हिटलर ने कब अपने आप को गोली मार ली उनको इसका पहला आभास तब हुआ, जब उनकी नाक में बारूद की हल्की सी महक गई जो की हिटलर के बंकर में टेलिफ़ोन ऑपरेटर थे.


कुछ सालों पहले उन्होंने कहा था, की "अचानक मैंने सुना कोई हिटलर के अटेंडेंट से चिल्ला कर कह रहा था, 'लिंगे! लिंगे! शायद हिटलर नहीं रहे.' शायद उन्होंने गोली की आवाज़ सुनी, लेकिन मुझे तो कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी. उसी समय हिटलर के निजी सचिव बोरमन ने सब को चुप होने के लिए कहा."


" वहां पर हर कोई आपस में फुसफुसा कर बात कर रहा था. तभी बोरमन ने हिटलर के कमरे का दरवाज़ा खोलने का हुक्म दिया. जैसे ही दरवाजा खुला मैंने देखा की हिटलर का सिर मेज़ पर लुढ़का हुआ था. इवा ब्राउन भी साईनाईट की गोली खाकर आत्महत्या कर ली थी उनकी लाश सोफ़े पर लेटी हुई में अवस्था में पड़ी थीं और उनके घुटने सीने तक मुड़े हुए थे. उन्होंने गाढ़े नीले रंग की की पोशाक पहनी हुई थी जिस पर सफ़ेद रंग की फ़्रिल लगी हुई थी.मरते मरते शायद उन्होंने अपना हाथ फैलाया था, जिसकी वजह से वहाँ रखा फूलों का गुलदस्ता जमीन पर गिर गया था. मैं अपने जीवन में इस दृश्य को कभी नहीं भूल सकता." जो मैने उस दिन देखा था..…


हेल हिटलर की सच्चाई..


इसके बाद लिंगे ने हिटलर के शव को कंबल में लपेट दिया और वो उसे ले कर इमरजेंसी दरवाज़े से ऊपर चांसलरी के बगीचे में ले गए और बोरमन ने इवा ब्राउन के शव को अपने हाथों में उठाया. वही हिटलर के टेलीफोन ऑपरेटर रोकस मिस्च याद करते हैं, "जब वो हिटलर के शव को मेरे पास से ले कर गुज़रे तो उनके पैर नीचे लटक रहे थे. किसी ने मुझसे चिल्ला कर कहा, 'जल्दी ऊपर आओ. वो लोग बॉस को जला रहे हैं. लेकिन मैं ऊपर नहीं गया.''


हिटलर के जीवनीकार इयान करशाँ लिखते हैं, की "इस दृश्य को हिटलर के अंतिम दिनों के साथी बंकर के दरवाज़े से देख रहे थे. जैसे ही उनके शवों में आग लगाई गई, सभी ने हाथ ऊँचे कर 'हेल हिटलर' कहा और वापस बंकर में लौट गए. उस समय बहुत ही तेज़ हवा चल रही थी."


"जब आग की लपटें कम हुई तो उनपर और पेट्रोल डाला गया. ढाई घंटे तक यूं ही लपटें उठती रहीं. रात को 11 बजे ग्वेंशे ने एसएस जवानों को उन जले हुए शवों की राख को दफ़नाने का आदेश दिया. 


कुछ दिनों बाद जब सोवियत जाँचकर्ताओं ने हिटलर और उनकी पत्नी के अवशेषों को बाहर निकाला तो सब कुछ समाप्त हो गया था,  और ज्यादा कुछ वहां मिला नही सिर्फ वहाँ एक डेंटल ब्रिज ज़रूर मिला. सन 1938 से हिटलर के दंत चिकित्सक के लिए काम करने वाले एक डॉक्टर ने पुष्टि की…….. कि वो डेंटल ब्रिज हिटलर के ही थे."


अंततः जो भी हुआ दुखद हुआ लेकिन एडोल्फ हिटलर को ही हमेशा करोड़ों लोगों की मौत का जिम्मेदार माना जाएगा।


इस प्रकार दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह के नाम से जाना…जाने वाले एडोल्फ हिटलर का अध्याय उनकी दुखद मौत के बाद समाप्त हो गया…..


अब इसके बारे में आपको और अधिक जानकारी नहीं दे सकता.. इसलिए उम्मीद करता हूँ की आपको मेरा "एडोल्फ हिटलर" के अंतिम दिनों यह वीडियो जरूर पसंद आया होगा. मैंने अपनी तरफ से सभी जानकारियां आप तक पहुंचाने की पूरी कोशिश की है …की उस समय उनके अंतिम दिनों में क्या हुआ था उनके साथ ….. ताकि आपको भविष्य में इस विषय के संदर्भ में किसी भी प्रकार की कोई भी दूसरी वीडियो देखने की आवश्यकता ना पड़े.

धन्यवाद….

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